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+18+ षष्टमांग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध 48+
॥ प्रथम श्रुतस्कन्धं ॥ .
॥ उत्क्षिप्त नामकं प्रथममध्ययनम् ॥ तेणं कालेणं, तेणं समएणं, चंपाएणामणयरि होत्था, वण्णओ ॥१॥ तीसेणं. चंपारणयरीए बहिया उन्तरपुरच्छिमेदिसीभाए इत्थेणं पुन्नभदेणाम चेइए होत्था, वण्णओ ॥ २ ॥ तत्थणं पाए णयरीए कोणिए णामं रायाहोत्या, वण्णओ ॥ ३ ॥ उस काले उस समय में चंपा नामकी नगरी थी, उसका वर्णन ऋद्धि पूर्ण भय रहित वगैरह ज्यवाइ सर जैसे जानना ॥ १ ॥ उस चंपानगरी की बाहिर ईशान कौन में यहां पर पूर्णभद्र नाम का उद्या या
१ चौथा आरा २ उस वक्त कि जिस वक्त मैं भगवंतने यह भाव देखे.
488+ अक्षितकुमार) का प्रया या
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