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________________ अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी तेणं कालेणं तेणं समएणं; समणस्स, भगवी महावीरस्स अंतेवासी अज सुहम्मे है .. णाम थेरे-जाइसंपन्ने, कलसंपन्ने, बाल-रुव-विणय-पाण-दसण-चरित्त-लाघष संपन ओयंती, तेयंती, वच्चंसी, जलेसी, जियकोहे जियमाणे, जियमाए, जियलोहे, जिइं. दिए, जियनिहे, जिय परिसहे, जीवियासामरणभयविप्पमुक्के, तवप्पहाणे, गुणप्पा हाणे, एवं-करण-चरण-णिग्गह णिच्छय-अजव-मदव-लाघव-खंति-गुत्ती-मुत्ती-विजा मंत-बंभचेर-बेय-णिय-णियम-सच्च-सीय-णाण-दसण-चरित्तप्पहाणे; ओराले,घोरे,धोरवए, उस का वर्णन भी उपचाइ मूत्र से जानना ॥२॥ उस चंपा नगरी में कोणिक नामक राजा था उस का वर्णन भी उववाइ सूत्र से जानना. ॥३॥ उस काल ससमय श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामीजी के ज्येष्ट अंतेवामी-शिष्य आर्य सुधर्मास्वामी स्थविर. कैसे थे सो कहते हैं-जाति संपन्न - मातृपक्ष निर्मलथा, कुल संपन्न-पितृपक्ष निर्मलथा, बल संपन्न-वज्रऋषभनाराच संघयनवाले थे, रूपक - सर्वांग में अर्थात् समचतुत्र संस्थानके धारक. दिनय नम्रपन्ने कोमल स्वभाववाले, ज्ञानमति,श्रत, अवधिव मनापर्यव चार ज्ञान के धारक, दर्शन-सायिक सम्यक्त्व के धारक, चारित्र - सामायिकादि उत्तम चारित्र के धारक, लघुता-द्रव्यमे उपधिकर और भावसे कषाय व तीनों गर्वसे रहित हलके ओजस्वी-मनके चढते परिणामवाले, तेजस्वी-शरीर की अच्छी प्रभावाले, यशस्वी - सोभारयादि गुण सहित उत्तम यशवंत, क्रोध मान, मा • प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायता ज्वालाप्रमादनी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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