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________________ धर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध या वह तमांग-माता महावीरे मेहकुमारस्स तीसेय महइमहालियाए परिसाए मझगए विचित्तं धम्ममाइ. क्खइ जहा जीवा वज्झंति मुच्चंति जहय संकिलिस्संति, धम्मकहा भाणियन्वा जाव परिसा पडिगया ॥९१॥ तएणं से मेहेकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोचा णिसम्म हट्ठतुट्ठ समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ २ वंदइ - णमंसइ २ एवं वयासी-सहहामिणं भंते ! णिग्गंथपावयणं, एवं पतियामिण-रोएमिणं - अब्भुट्ठमिणं भंते ! गिग्गंथंपाव यणं, एवमेयं भंते ! तहमेयं अवितहमेयं इच्छियमेयं पडिच्छयमेयं भंते ! लगे ॥ ९० ॥ उस समय श्री श्रमण भगवंत महावीरने उस भहती परिपदा में विचित्र प्रकार से श्रुत चारित्र रूप धर्म कहा.-यह त्रीव मिथ्यात्व अत्रवादि से बंधाता है, ज्ञान चारित्र से मुक्त होता है, रागद्वेष से संतम होता है विशेष सत्र उववाइ सूत्र से जानना. इस तरह धर्म श्रवण कर परिषदा अपने स्थान पीछीगइ ॥ ९१ ॥ मेघकुमार श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास धर्म सुनकर हृष्ट तुष्ट हुए और श्रमण A भगवंत महावीर स्वामी को तीनवक्त आवर्त प्रदक्षिणा कर वंदना नमस्कार करते हुवे ऐसा कहनलगे अहो भगवन् ! निर्ग्रन्थ के प्रवचन मैं श्रद्धता हूं, मुझे उस की रुचि व प्रतीति हुई है. निग्रन्थ के प्रवचन में मैं । 4882 उत्क्षिप्त (मेघकुमार) का प्रथम अध्ययन 46. अर्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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