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अष्टांग हाताधर्मकथा का द्वितीय श्रुतस्कन्ध 4kre
धम्मोका हिओ परिसा जामेवदिसि पाउम्भूया तामेवदिसि पडिगया॥३॥तेणं कालेणं तेणे समएणं अजसुहम्मस्स अणगारस्स अंतेवासी अज जंबूगामे अणगारे जाव पज्जा
समाणे एवं बयासी-जतिणं भंते ! समजेणं भगवाया महावीरेणं जाव संपत्तेगं छटुस्स ___ अंगस्स पहम सुपखंधस्स णायाणं अयमढे पण्णत्ते दोबस्सणं भंते सुयखंधस्स.धम्म कहाणं
समगेगं भगवया महावीरेणं जाव संपत्ते के अट्टे पन्नत्ते । ॥ एवं खलु जंधु! समणेणं भगवयामहावीरेणं जाव संपत्तेणं धम्म कहाणं दसवगा पण्णता तंजहा चमरस्सणं अगमहिसाणं पढ़मेवावलिस्स बहरोयर्णिदस्ती वरीयण रन्नो अग्गमहिसाणं वीए.
बग्गे, ॥२॥ असुरिंदवजाणं दाहिणिलाणं भवणवासीणं इंदाणं अग्गमहिसीणं तइएवग्गे E॥ ३ उस काल उस समय में आर्य सुधा स्वामी अनगार के अंतेवासी आर्य जम्बू अनगार पावत पर्युपासना करते हुने ऐमा बोले अहो. पूरय मा श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने शातासूत्र नामक छट्ठा अंग के प्रथम श्रुतस्कप का उक्त अर्थ कहा तब दूसरा श्रुतस्कंध का स्या अर्थ कहा है ? ॥४॥ बहो जम्बू!" श्री श्रमण भगवंत महावीरस्वामी यावत् जो मोक्ष पधारे उभोंने धर्मकथा के दूसरे श्रुतम्ध के दशवर्ग कहे हैं। जिस के नाम-१ चपरेन्द्र की अनमहिषियों का पर्स, २.लि. नायक वैरोचनेन्द्र की अअपहिषियों। का दूसरा वर्ग, ३ असुरेन्द्र छडकर शेष दक्षिण दिशा मनपीत के इन्द्रों की अनमहिपियों का
8. पहिला वर्ग का पहिला अध्ययन
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