________________
www
mandeEAMES
विषुलेणं पुप्फवत्थगंधमल्लालं करेण सकारइ सम्माणइ २ एवं वयासी-जम्हाणे अम्हं इम्मस्स दारगस्स गब्भत्थस्स चेव समाणस्स अकालमेहसुडोहलेपाउन्भूए तं होउणं अम्हं दारए मेहेणामेणं; तस्स दारगरत्र अम्मापियरो अयमेयारूवंगोणं गुणणिप्पणं णामधेजं करेइ ॥ ७२ ॥ तएणं से मेहकुमारे पंचधाई परिग्गहिए, तंजहा-खीरध इए, मंडणधाइए, मजणध इए.कीलावणधाइए. अंकधाइए, अण्णाहिय बहुहिं खुजाहिं चिलाइयाहिं वामणि, वडभि,बव्वरि, बकुसि, जोणियाहि, पल्लविथ,
ईसिणिय घारुगिणि, लासिय, उसिय, दमिलि, सिंहलि, आरवी, पुलिंदी, पकणि, स्वच्छ कीये, मित्र ज्ञाति स्वजन संबंधी व गणनायक को विषुल पुष्प वस गंध व अलंकार से सत्कार सम्मान कीया और ऐसा बोले कि जब हमारा यह बालक गर्भ में था तब अकाल मेव का दोहरू उत्पम हुवा इस से इस पुत्र का नाम 'मेघ' होवो. और मातपिताने ऐसा गुण निष्पन्न नाम उस बालक का रखा ॥ ७२ ॥ अब १ क्षीरधाइ-स्तनपान करानेवाली, २ मंदनधाइ-वस्त्राभूषण पहिनानेवाली, ३ मजणधाइ-स्नान करानेवाली, ४ क्रीडाघाइ-कुतहल करानेवाली और अंकथाइ-गोद में लेनेवाली ऐसी पांच और भी इन
सिवा कुरुजा, चिलात देशकी बामन देशकी, बड देश की, बर्बर देशकी, बकुश देशकी,योनिक देश की,बल12पिय देश की, ऋषि देश की, भारूणि देश की, लामिय देश की, उप्तिय देश की, दामल देश का, सहल
३ अनुवादक-चालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी
wwwwww~
प्रकाशक रानाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org