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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी में
जिमिय भत्तत्तरागए ते पंचचौरसए विपुलेणं असणं ४ धृवपुगंधमलालंकारेण..
सक्कारेति सम्माणेति सकारत्ता सम्माणेत्ता एवं व्यासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! 'रायगिहे नगरे धण्णेणाम सत्थवाहे अड्ड, तस्सणं धूयाभदाए अत्तया पंचण्हं पुत्ताणं अणुमग्गजातिया सुसुमाणाम दारिया होत्था, अहीणा जाव सुरूवा, तं गच्छामोणं देवाणुप्पिया ! धण्णस्स सत्थवाहस्स गिहं विलुपामो तुब्भे विउल धणकणग जाव सिलप्पवाले, मम सुसुमा दारिया ॥ २१ ॥ सतेणं ते पंचचोरसया चिलायस्म वयणं
पडिसुणंति ॥ २२ ॥ ततेणं से चिलाए चोर सेणावती तेहि पंचहिं. चोरसएहिं अशन, पान, ख दिम, स्वादिम, धूप, गंध, पुष्प, माला व अलंकारों से सत्कार सन्मान देकर ऐमा कहा अहो देवानुप्रिय ! राजगृह नगर में धन्ना सार्थवाह रहता है. नह ऋद्धिवन यावत् अपराभूत है. उस की पुत्री भद्राभार्या की आत्मजा व ..उन के पांचो पुत्री के पीछ जन्मी हुइ सुममा नामक कन्या है. वह संपूर्ण इन्द्रियों वाली यावत् सरूपा है. इस लिये अहो देवानुप्रिय !
अपन वहां जावे और धन्ना साथीह का गृह लूटे. इस में से जो छ। कनक मिले वह तुम लेना और मन रूमुसुमा कन्या लेऊंगा ॥२१॥ पांच सो चोरोने उस चिलात चोर सेनापति का वचन मान्य किया ॥ २२ ॥
.प्रकाशक राजाबहादर लाला मुखदवसहायजा ज्वालाप्रसादजी.
अर्थ
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