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अंतिए एयमटुं सोचा आसुरुत्ते चिलायं दास चेडं उच्चावयाति आउसणाहिं आउसेति उसेति णिब्भंछति, निच्छोडेति, तज्जेति, उच्चावयाहिं तालणाहिं तालेति, सातो गिहाओ णिच्छुभति ॥ ८॥ ततेणं से चिलाए दास चेडे सातो गिहातो निच्छूढे समाणा रायगिहे णयंर सिंघाडए जाव पहेसु देवकुलेसुय सभामुप पवासुय जुयखलएसुय, वेसाघरेभुय, पाणघरएसुय, सुहसुहेणं परिवति ॥ ९॥ ततेणं चिलाए दासचेडे अणोहट्ठिए अणिवारिए सच्छंदमई सहरप्पयारी मजप्पसंगी, यावत् उक्त कथन निवेदन किया. धमा सार्थवाह उन बालकों के मातपिता की पास से ऐपा सुनकर भासुरक्त हुचा और चिलात दास चेटक को चोलाकर ऊंच मीच आक्रोशकारी पचनों से आक्रोश किया, उस की तर्जना ताडना की और अपने गृह से वाहिर निकाल दिया ॥८॥ अब वह चिलात दास अपने गृह से निकलकर राजगृह नगर के शृंगाटक यावत् राजमार्ग में, देव मंदिरों में, सभा में, पानी पीने की प्रपा में, ध्रुतखेलने के स्थान में, वैश्या के घरों में व मदिरा पान करने के घरों में सुख पूर्व
रहता हुवा वृद्धि पाने लगा ॥१॥ अथ चिलात दास चेटक को उन्मार्ग में जाते किसि का निरोध रहा नहीं 100 17 इस से वह स्वच्छन्दाचारी बनकर मद्ये पीनेवाला, मांस खोनवाला चौरी करनेवाला, द्यूत खेलनेवाला, वेश्या की।
षष्टांग ज्ञानाधकथा का प्रथम श्रुतस्कन्धं 4
सुषुमा दारिका का अठारहवा अध्ययन
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