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बादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलखपिजी
तुयंदतिवा, ताह २. चगं ते कोडं वेयपुरिसा ताओ वीणातीय जाव चि सविणाओय अन्नाणिय बहुणि सोइंदिय पाउग्गाणिय दवाइस मुदीरे माणा २ठति, तसिं चणं परि परंतेणं पासे ठति णिच्चला णिफंदा तुसिणीया चिटुति ॥ जत्थ जत्थ ते आसा आसयतिवा जाव तुपतिवा तत्थ तस्थणं ते कोजुबिय पुरिसा बहुणि किण्हाणिय, कट्ठ कम्माणिय झाव सपाइमाणिय अन्नाणिय बहाणे . चक्खिदिय पाउग्गाणिय दव्वाणि ठवेति; तेसिं परिपेरतेणं पासए ठति, णिच्चला णिफंदा तुसिणीया चिटुंति २ ॥ जस्थ २ ते आमी आसयंति ४ तत्थणं ते कोडुबिय पुरिसा बहुणं कोटण पुडाणय जाव अण्णेसिंच घाजिदिय पाउग्गाणं दवाणं पुजेणय णियरेये करेंति, तेसिं परिपेरंत जाव चिटुंलि ॥ जत्थ २ गं ते आसा आसयंति ४, तत्थ २ अन्धे बैठते थे, सोते थे, खडे रहते थे, वहाँ २ कौटुम्बिक पुरुषों उन वीणाओं को व श्रोत्रन्द्रिय के. योग्य अन्य बहुत द्रव्यों को उन घोडे के चारों तरफ बजाते हुवे निश्चल, हलन चलन सिवाय मौन खडे रहने लगे. जहां २ व घोडे सोते,बैठते उन खडे रहते थे वहार वे घोड के सोने बैठ ने आसपास कृष्ण वर्ण वाले यावत् शुक्लवर्णवाले यावत् संघातिम और चक्षु इन्द्रियों को योग्य अन्य बहुत द्रव्यों को रखकर वे पुरुषों निश्चल खडे रहे. और भी वे घोडे सोते यावत् उन थोडे की आस पास कोष्ट के घुडे यावन् घ्राणन्द्रिय को योग्य अन्य
प्रकाशक-जावह 'दर लाला मुखदेव महायजी ज्वाल.प्रसादजी
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