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________________ + षष्टांड्रज्ञानाधर्मकथा का प्रथप शुसस्कन्ध 4 अरिष्टुणेमी पुवाणुपुम्नि जाब विहरति, तं. सेमं खलु अम्हं थे। आपुच्छित्ता अरिहं अस्ट्रिनेमि बंदणाए गामत्तए अन्नमसरस एयमटुं पडिसुणेइ २त्ता जेणेव थेरा भगवंतो तेणवा उवागच्छद २ त्ता थेरा भगवंत वदति नमंसप्ति एवं व्यासी-इच्छामीणं तुठभेणं अब्भणुन्नाया समाणा अरहं अरिटुनेमी जाव गमित्तए? अहासुह दवाणुप्पिया! ततेणं ते अहिटिल्ल पामाखा पंच अणगारा थे रेहिं अब्भणुण्णाय समाणा थेरे भगवते वदेइ नमसई बंदित्ता नमंसित्ता थेराणं अंतियाओ पडिमिक्खमइ २ त्ता मासंमालेणं अणिक्खित्तेणं तकम्मेणं गामाणुगामं दूइज्जमाण जाव जेणेव हस्थिकप्पे पयरे तेणेव उवागच्छइ २ ता हत्थीकप्पणयरस वहिया सहस्संत्रवणे सौराष्ट्र देश में विचर रहे हैं इस से स्थविर भगवंत को पुछकर अरिहंत अरिष्टनेमी को वंदना नमस्कार करने के लिये जाना अपन को श्रेय है. यो परस्पर वार्तालाप कर के स्थविर के पाम आये. स्थविर भगवंत को वंदन नमस्कार करके कहने लगे कि आप की अनुज्ञा होवे तो हम अरिहंत अगिट नेमी को वंदना नमस्कार करने के लिये जाना चाहते हैं. स्थविरोंने उत्तर दिगा कि अहो देवानुप्रिय ! तुम को जैत मुख हावे वैसा करो. ता युधेष्ठिर प्रमुख पांवों अनसार स्थविर की अनुजा होते स्थविर भगवंत को बंदना नमस्कार करके उन की पाल से नीकल कर एक २ मास की निरंतर सपश्चर्या करते हवे. प्रामाम 48. द्रौपदी का सोलहवा अध्ययन 48 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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