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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
वियालिं तत्थ पंडुमहुरं णिविसंतु ॥ मम · अदिट्ठतेवगा भवंतु तिकटु, कोतिदेवि : : सक्कारेति समाणेति, सकारेत्तार जाव पडिविसजेति ॥ १९६ ॥ ततेणं सा कोंतीदेवी... जाव पंडुरस एयमटुं णिवेदेति ॥ १९७ ॥ ततेणं ते पडू राया पंचपंडवे सहावेति रत्ता एवं वयांसी-गच्छहणं तुम्भे पुत्ता ! दाहिणिल वेयालिं तत्थणं तुब्भे पंडुमहुरं णिवे- .. सेह ॥ ततेणं ते पंच पंडवा पंडुस्सरण्णो जाव तहत्ति पडिसुणेति, सबलवाहणा हत्थिणाउराओ पडिणिक्खमति २त्ता जेणेव दक्खिणिला वेयाली तेणेव उवागच्छति..
२त्ता पंडुमहुरं नगरं णिवेसंति, पंडुमहुरं नगर णिवेसिचा,तत्थणं ते विपुलभोगसमिति होते हैं. इस से पांचों पांडवों दक्षिण दिशा में वेतालिक (समुद्र के तट पर ) नविन पाण्डुपथुरा नगरी बसाकर मेरी दृष्टि से दूर रहकर सेवकपना करे. यों कहकर कुंती देवी का सत्कार मन्मान कर यावत् विसर्जित की ।। १९६॥ कंती देवीने हस्तिनापुर में आकर पाण्डु राजा को सब पात निवेदन की। ॥ १९७ ॥ तब पांड राजाने पांचों पांडवों को पोलाकर ऐमा कहाँ बहो पुत्र ! दक्षिण दिशा में बेत लिक है वहां पर पांदु मथुरा नगरी बसाकर रहो. पांचों पांडवोंने पांड राजा के वचन तहत किये. और बल सैन्य व बाहन वगैरह सहित हस्तिनापुर में से निकलकर दक्षिण दिशा में वैतालिक की पास आये. है।
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.प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालापसादजी.
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