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सूत्र
अर्थ
4: अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनी श्री अमोलक ऋषिजी
सव्वओ समंता मग्गण गबेसणं करेति २ त्ता, एगट्टियं अपासमाणे एगाए बाहाए रहंसतुरंगंसारहिं गिण्इ २ ता एगाए बाहाए गंगमहाणदि बासट्ठि जोयणाति अद्ध जोयणंच विच्छिण्णं उत्तरिओ पवत्तेयावि होत्था ॥ ततेणं. से कण्हवासुदेवे गंगाए महानदी बहुमज्झदेसभाएं संपत्तेसमाणे संते तंते परितंते बद्धसेए जाएयात्रि होत्था ॥ तणं तस्स कण्हवासुदेवस्स इमे एयारूवे अज्झत्थिए जात्र समुप्पजित्था अहोणं पंचपंडवा महाबलगगा जेहिं गंगा महानदी बासट्ठि जोयणाति भद्धं जोयचं विच्छिणा बहाहिं उत्तिष्णा एत्थंत एहिणं पंचहिं पंडवेहिं पउमणाभेराया जाब णी पडिसेहि ॥ १८९ ॥ ततेणं गंगदेवी कण्हस्स वासुदेवरस इमं एयारूवं
नहीं मिलने से एक हाथमें अश्वों व सारथी सहित रथ लिया और दूसरे हाथ से साडी बासठ योजन की विस्तारवाली गंगा नदी को तीरने के लिये प्रवृत्त हुए तीरते २ गंगा नदी के मध्यभाग में आये तव {कृष्ण वासुदेव परिश्रम से थक गये, तप्त होगये व शरीर में स्वेद आगया. उस समय उनको ऐसा अध्यवसाय हुवा कि अरे ! पांचों पांडवों बडे बलवंत हैं क्यों कि वे ६२ ॥ योजन के विस्तार वाली गंगानदी तीर गये. तब उनोंने पद्मनाभ राजा को क्यों मारा नहीं यावत् उसे दशोंदिशी में भगाया नहीं ! ॥ १८९ ॥
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*मदायक राजबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी ०
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