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________________ ६७२ वासुदेवं एवं क्यासी-एवं खलु सामी !. जंबुद्दीवाओ भारहाओ वासाओ इहं . इन्धमागयरस कण्हेणं वासुदेवेणं तुम्भे परिभूय अमरकंक जाव संनिवडिया ॥१८६॥ ततेणं से कविल वासुदेवे पंउमणाहस्स अंतिए एयमटुं सोचा पउमणाहं एवं वयासी-हं भो पउमणाभा ! अपत्थिय पत्थिया किंन्नं तुभंण जाणासि ममसरिस पुरिसस कण्हरस वासुदेवस्स विपि करेमाणे असुारुत्ते जाव पउमणाहं णिविलियं आणवेति, २ त्ता पउमणाहरस पुत्सस्स अमरकंकं रायहाणीए महया २ रायाभिसेएणं अभिसिंचेति जाव पडिगते ॥ १८७ ॥ ततणं से कण्हवासुदेवे लवणसमुद्दस्त मझ मझेणं वीतीवयती २ ता गंगंउवागए ते पंचपंडवे एवं वयासी-गच्छहणं तुम्भे कहने लगा कि अहो स्वामिन् ! जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में से कृष्ण वासुदेवने आकर तुमने जीती हुई इस अमरकंका राज्यधानी को ऐसी स्थिति की ॥ १८६ । पद्मनाभ की पास से ऐपा. सुनकर कपिल वासुदेव । कहने लगे कि अरे अप्रार्थित की प्रार्थना करनेवाला पद्मनाभ क्या नू नहीं जानता था की मेरे समान कृष्ण वामदेष की साथ बने शबूता की. यो आसुरक्त बनकर यावत् पद्मनाभ को देश से वाहिर · कर दिया. और उसके पुत्र को अमरकंका का राज्य देकर अपने स्थान पीछे गये। १८७ ॥ लवण *. * समुद्र का उद्धंघन करते गंमानदी के पास आकर कृष्ण वासुदेवने पांचों पांडवो को कहा कि अहो देवानुपिय तुम हैं। 2 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी । पकावक-राजाबहादुर लाला मुखदव सहायजी कालाप्रसादजी. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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