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________________ सूत्र अर्थ अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी एवं वयासी - किण्णं तुमं देवःणुपिया ! ओहय जाव ज्झियाहि, एवं खलु तुभं देवः पिया ! ममं पुव्व मंगतिएणं देवणं जंबुद्दीवाओ भारहाओ वासाओ हत्थिणापुराओ नयराओ जुहिट्टिलस्त रन्नो भवणाओ साहरिया, तं माणं तुमं देवाणुपिया ! ओहय जाब झियाहि, तुमं मए सार्द्धं विउलाई भोगभोगाई जाव विहराहि ॥ १४७ ॥ ततेणं सा दोत्रती देवी पउमणाभं एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिया ! जंबुद्दीव भारवा वारावतीए जयरीए कंणाम वासुदेवं ममपिया भाउए परिवसति, तं जतिणं छण्ह मासाणं ममकू णो व्वमागच्छइ, ततेणअहं देबाणुप्पिषा ! जं तुमं वदसि तरस वहाँ द्रौपदी देवी को संकल्प विकल्प करती यावत् आर्त ध्यान ध्याती हुई देखकर ऐसा बोला, अहो देवानुप्रिय ! तुम किस लिये यावत् आर्त ध्यान करती हो. अहो देवानुप्रिय ! मेरे पूर्व परिचित देवने जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र के हस्तिनापुर नगर में युधिष्टिर राजा के भुवन में से तेरा साहरन किया है. अहो देवानुप्रिय ! तू यहां संकल्प विकल्प मत कर यावत् आर्त ध्यान भत कर. तू मेरी साथ भोगोपभोग भोगवती हुई रहे || १४७ ॥ तच द्रौपदी पद्मनाभ राजा को ऐसा बोली, अहो देवानुप्रिय ! जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र की द्वारिका नगरी में मेरे पति के भाई कृष्ण वासुदेव रहते हैं. यदि छ मास में यहां पर मुझे लेने को आवे, नहीं तो तुम जो कहोगे वैसा मैं करूंगी ॥ १४८ ॥ पद्मनाभ Jain Education International For Personal & Private Use Only प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ब्ष ला प्रसादजी ६४४ www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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