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मुनि श्री बमोबक ऋषिजी बालब्रह्मचारी
देवरस सेयवर चामरं गहाय उवर्वीयमाणे २ चिटुंति॥११॥ततेणं सा दोवती रायवर. कन्ना कलंपाउप्पभाए जेणव मजणघरे तेणेव उवागन्छइरत्ता मजणघरं अणुविसइ२ सा व्हाया जाव सुद्धपावेसाइं मंगलाईवस्थाई पचरपरिहिया जिणपडिमाणं अचणं करोतिरत्ता
जणव अंतउरे तेणेव उवामच्छइ ॥ १२ ॥ ततेणं तं दोक्ई रायवरकण्णं सामुदेवका पत चामर अपने हाथ से ढोलते हुए खडे रहे। १११ ॥ प्रातःकाल होतेही राज कन्या द्रौपदी मज्जनः गृहमें मइ. वहां स्नान किया,यावत् राजसभा में प्रवेश करने योग्य शुद्धवस्त्र पहिने,जिन प्रतिमा की अनाकी, फॉर अंत:पुर में आई. + ॥ ११२ ॥ तत्पश्चत् . राजकन्या द्रौपदी को अंत मुर में सब अलंकार से cal
+आधुनिक समय में इस कथन में मत भिन्नता हो रही है. कितनेक की मान्यता यह है कि द्रोपदीने है जिन जो अरिहंत भगवंत उन के मंदिर में जाकर उन की सूर्याभ. देवता, जैसे पूजा की. कितनेक इस मत से सर्वथा १ विरुद्ध है, अर्थात् उसने अरिहंत पूजा नहीं की है। वैसे ही नमोत्थुणं का पाठ भी नहीं किया है. संवत १६१५ की प्राचिन
हस्त लिखित प्रतों होशिआरपुर और व लिंबडी वगैरह स्थलोंसे हमें मीली है. इसमें पाठ मात्र जिण पडिमं अच्चणं करेइरत्वा जेणेव, अंतेउरे तेणेव उवागच्छइ इतना ही है. यह पाठ मसुदाबादवाले बाबु धनपतासिंह तर्फ से प्रसिद्ध हुवा ज्ञाता सूत्र की शैलंगाचार्य कृत टीकामें वाचनांतर से लिया है. पृष्ट १२५५ इस पाठ मे प्रोपदीने सूर्यभ देव जैसे पूजा की होवे वैसा नहीं लिखा है. मात्र अर्वाचिन प्रतों में पाठ दीखाइदेता है कि जेणेव जिणघरे तेणेव उवागच्छद २ त्ता जिणघरे अगुपावसइ २.त्ता है जिण पडिमाणं आलोए पणामं करे २त्ता लोमहत्वगः पमन्जद २त्ता एवं जहा सरिआभो जिण पडिमाओ अच्चेइ तहेव ।
प्रकाशक-राजारादरलाना मुम्वदेवमहायजी आलाप्रसादजी
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