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पसन्नंच सुबहु . पुप्फवत्थगंधमलालंकारंच वासुदेव पामोक्खाणंरायसहस्साणं आवासे मु साहरह ॥ तेबि साहरंति ॥ १.५ ॥ तएणं ते वासुदेव पामोक्खा तं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं जाव पसनं चं आसाएमाणा४ जाव विहरंति, जीमिय भुत्तत्तरागया वियणं समाणा आयंता चोक्खा जाय सुहासणवरगया बहूहिं गंधव्वेहिय जाब विहरंति ॥ १०६ ॥ ततेणं से दुवेएराया पुवावरण्ह काल समयंसि कोडुबिय पुरिसे सहावेइ२ सा एवं वयासी-गच्छहणं तुमि देवाणुप्पिया !कंपिल्लपुरं णयरं
सिंघाडग जाव पहेसु वासुदेव पामोक्खाणय रायसहस्साणं आवासेसु हत्थिखंधवरगया अर्थविशेष ] और पुष्प वस्त्र, गंध, माला, अलंकार वगैरा बासुदेव प्रमुख राजाओं के आवास में लेजाओ.
वे लोगों भी उक्त सब वस्तुओं लेगये. ॥ १०५ ॥ बोसुदेव प्रमुख सब राजाओं अशनादि यावत् प्रसन्न नामक सुरा का आस्वादन करते हुने विचरने लगे. जीम कर मुख प्रक्षालनादि से शुचिभूत बनकर यावत् |
पूर्वक बहुत गंधर्ष की साथ यावत विचरने लगे. ॥१.६॥ दुपद राजाने दिन के पीछे के भाग में
मिक पुरुषों को बोलाकर ऐमा कहा अहो देवानुप्रिय ! तुम जाओ और कंपिल पुर नगर 11/श्रृंगाटक यावत् महापय में बासुदेव प्रमुख अनेक राजाओं के आवास में हाथी पर स्वार हो कर बडेर*
अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी *
प्रकाशक समावहादुर लालासुखदक्सहायजी ज्वाला प्रसादजी
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