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षष्टांग माताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध HD
चाउघंटं आसरहं दुरूहतिरता बहुहिं पुरिसेहिं सन्नद्ध बद्ध जाव गहियाओप्पहरणेहि सद्धिं संपरिवुडे कंपिल्लपुरणयरं मझं मझेणं णिग्गच्छति २ ता पंचालजणवयस्स मज्झं मझेणं जेणेव देसप्पंते तेणेवा उवागन्छति २ ता, सुरटुजणवयस्स मज्झं मज्झेणं जेणेव बारावतीणयरी तेणेव उवागछइ २ चा, वारावर्तिणयरिं मझं मझेणं अणुपविसतिरचा जेणेव कण्हस्स वासुदेवस्स बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ २ चा चउघंट आसरहं ठावेति, रहं ठावेत्ता, रहाओ पञ्चोहति २ त्ता मणुस्सवम्गुरापरिक्खित्ते पायविहार चारेणं जणेव कण्हवासुदेवे तेणेव उवागच्छद
२ चा कण्हवासुदेवं समुद्दविजय पामोक्खेय दसदसारे जाव बलवगसाहस्सीतो पांचाल देश में होता हुवा देश के अंत में आया, वहां से सौराष्ट्र देश की बीचमें होता हुवा द्वारिका नगरी में आया वहां द्वारिका नगरी की बीच में होता हुवा कृष्ण वासुदेव की बाहिर की उपस्थान शान में माकर चार घंटा वाला अश्वस्थ खड़ा किया. वहां रथसे नीचे उतरकर बहुत मनुष्यों के परिवार से परिवरा हुनापति से चलता हुवा कृष्ण वासुदेव की पास आया. और वहां कृष्ण वासुदेव, समुद्र विजय प्रमुख दश
चार बावन महासेन प्रमख छम्पन हजार बळवंत पुरुषों के वर्ग को हाथ नोरकर दोनों हापको अंजळी, से पस्तक को मात देकर कहने लगा कि पांचाल देश में द्रुपद राजा की पुत्री चूठणी देवी की आत्मा ।
al द्रौपदी का सोलहवा अध्ययन
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