________________
सत्र
4
पटान ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कर 41
अजाण अतियातो पाडणिक्खमति पडिणिक्खमित्ता पाडी एक उवमग्ग उवसंपाजताणं विहरति तिकट्ट एवं संपहीरत्ता कल्लं पाउन्भया गोवालियागं अजाणं अंतियाओ पडिणिक्खमंइ २ ता पाडीएकं उवासगं उवसंपजित्ताणं विरहह ॥ तएणं सासकमालिया अज्ज! अणाहाट्रिया अणिवारिया सच्छंदमति अभिक्खणं२ हत्थं धावति जाव चति ॥८६॥ तत्थ वियणं पासत्था पासत्थविहारीणि, उसन्ना उमन्न विहारीणी, कुक्षीला कुसील विहारीगि, संसत्ता संसत्तविहारीणी' बहुणि यासाणी सामण परियारणति २ ता अहमासियाए संलेहणाए तस्स ट्राणस्स
अणालातिय-पडिकते कालमासे कालंकिच्चा ईसाणंकप्पे अन्नयरंसि विमाणंसि श्रेय है. एपा विचार र दो दिन प्रभात होते गोवालिका आर्या की पाम से नीकलकर पृथक
श्रय में जाकर विचरने लगी। ८५ ! इस तरह अलग रहने से उप्त को कोई कहने वाला रहा नहीं स को किसी कार्य मानिने जा रहा नहीं, जिससे स्वच्छता पूर्वक वारंवार हाथ धोने लगी यावत कायोत्सर्ग के स्थानी .॥८... यहां पर बहसकुमालिका आर्य पार्श्वस्था,वस्थ विहारिणी वनी, कर्श आचार सेवनलमा, आ की विराधना करती है, ऋद्ध आदि को गर्व करती
साकी , या दहत वर्ष पर्यंत संयम पलकर अधे मास की संलेखना कर पूकृत देष स्थान की आलाच द मन्दि क्रणय बिना काल के अवसर में काल कर ईशान देवलोक के किसी विमान में ।
द्रौपदी का सोलहवा अध्ययन
अर्थ
9
4.
For Personal & Private Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org