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________________ चारों अंग में पूजा गया है. इस के अलंकारा वषी पंडिता महा सती श्राप और अर्थ बुद्धि की २१६ आर्जिकाने पासत्थापना अंगीकार किया उस का कथन है. दूसरा अर्थ ज्ञाता धर्मकथा का ऐसा भी करते हैं कि-इस की धर्मकथाओंज्ञान की दाता है. इसलिये भी इसे ज्ञाता धर्मकांग कहते हैं. पभगवंतने चार प्रकार के अनुयोग कहे हैं जिम में सब शास्त्रों का समावेश हो जाता है. जिन का संक्षेप कथन तो श्री विवाहमति शास्त्र में किया गया है. और प्रथम के तीनों अनुयोग का कथन प्रथम के थरों अंग में पृथकर किया गया है. इस ज्ञाता धर्मकांग में फक्त एक धर्मकथानुयोग का ही वर्णन बढ़त खूबी के साथ किया गया है. इस के अलंकारों बडे २ विद्वानों को चकित बना देते हैं. इस का मूल पाट का सुधारा तो होश्यारपुर से वादीविजया विदुषी पंडिता महा सती श्री पारवती जी की तरफ से: माताई १७०२ के साल की लिखी हुई पुरानी प्रत के ऊपर से किया है. और अर्थ शुद्धि की मुख्यता में तो मद्रास निवासी शेठ अगर चंदमानमल की तरफ से धनपतसिंह बाबू की छपवाह हुइ प्रतपर से गौणता में मेरे पास की हस्त लिखित प्रतपर से किया है. तथापि अशुदी रहने का संभव है उसे श्रद्ध कर पठन कीजीये. ज्ञाताधर्म कथाङ्ग की अनुक्रमणिका. प्रथम श्रुतस्कन्ध. ४ दो काछवे का ४ , अध्ययन ... २२० मेषकुमार का १ अध्ययन ५ थावरचा पुत्र का ५ १२ घमासार्थवाइका २ , ..: १५९ । ६ तुम्बेका ६ का , मयूरी के अण्डेका३, ... २०१ । ७ रोहिणीका ७ वा." 18योजक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक पिजी - immmmmmmmmmmmmmons मा aamam मकासक-राजाबहादुर काबा ससदेवसहायजी ज्वालाप्रसाद - awar Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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