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सांड ज्ञाताधर्मकथाका प्रथम
समणा उमो ! जो अम्हे निग्गीथोवा जिग्गंधीवा पवतिए पवमुकामगुणसु सजति रजइ ज व अणु परिय दृस्मति जहाव तेपुरिसा ॥ १३ ॥ ततणं धणसत्यवाह सगडीसागड जायाति जायायेत्ता जगेव अहछत्तागयरी तेणेव उपागच्छ३ २ अहिछत्ताए णयरीए बहिया अग्गुजागसि सत्यानवमं करात २ ता सगडीमगडं मोयावेति ॥ १४ ॥ ततेणं से धण्णेसत्थव हे महरां रायारिह पाहुडं गेण्हति रायारिहं पाहुडं गोणिहत्ता बहुपुरिसेहिं साई संपवुिड आहेछ त णयारम्झंमज्झणं अणुप्पविमति २ ता जेणेव कणगक ऊ राया तेणेव उवागच्छइ २ त्ता करयल जाव बद्धावेद २ तं महत्थं ३ पाहुडं उणेइ ॥ १५ ॥ ततेणं से कणगके.ऊराया हट्ट अयष्मन् ! श्रपणे ! हमारे साधु साध्वी यात् पांच कामगुणों में गृद्ध हं.गा वह यावत् सर में परिभ्रपण करेगा. ॥ १३ ॥ प्राधना सार्थवाह सब गाडे जोताकर अहिछत्र नगरी में गये. वहां पडाव कर गाडे छुडवाये. ॥ १४ ॥ धनः सार्थमा मह मूल्यवाला व रजा को योग्य भेट गा लकर बडुन पुरुषा की साथ अहिछत्रा नगरी की बीच में होते हुए कनक रतु राजा की पास गया. उन को हाथ जोडकर विधाये और वहां महाअर्थवाला भेटगा रख दिया. ॥ १६ ॥ कनकेनुरनाने हृष्ट तुष्ट बनकर महा
फरवन का पन्नरहमा अध्ययन
अथ
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