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अनुवादक-लबमचारीमान श्री अमोल ऋषिजी 8.
राइसर जाव गिहाइ अणुप्पविसह तं, अत्थिया इमे अजाओ ! केइ कहिंवि चुण्ण जोएवा मंतजोएवा कम्मण जोएवा, कम्म ओएवा,हियउड्ढाएणेवा काय उड्डायणेवा आभिओ गिवावसीकरणेवा कोउकम्मेवा भूइकम्मेवा कंदे-मूले-छल्ली-वल्ली-सिलियावा गुलियावा ओसहेबा भेसज्जवा उबलद्धपुव्वे जणाहं तेपालपुन्तरस अमच्चस्म पुणरवि इट्टा ५ भवेज्जामि ॥ २९ ॥ तएणं ताओ अजाओ पोहिलाए एवं वुत्ताओ समाणीओ दोवि कण्णेठाएति २ पोटिलं एवं वयासी-अम्हेणं देवाणुप्पिया! समगीतो णिग्गंथीओ
जाव गुत्तबंभचारिणीतो नो खलु कप्पति अम्हं एयप्पयारं कन्नेहिं विणिसामिबहुत राजेश्वर वगैरह के गृहों में प्रवेश किया होगा, इस से अहो आर्याओ ! ऐसा कोइ चूर्णयोग, मंत्रयोग कामणयोग, कर्मयोग हृदय भाकर्षण करने का, काया आकर्षण करने का, योग, अन्य को पराभव करने का, वशीकरण, कोतुक कर्म, भुतिकर्म, कंद, मूल, छल्ल, बल्ली, मिलिया, गुटिका, औषध, या मेषज्य हो कि जिम मे में पुन:तेतली पुत्र अमात्य को पहिले से इष्ट होऊं. ॥ २९ ॥ पोट्टिला का
कथन सनकर उन आर्याओने अपने दोनों कान में अंगुली रखकर पोहिला को ऐमा कहा अहो पानुप्रियाहम श्रमण निर्गन्थीतियो हैं यावत् मुख ममचारीणियों हैं. हमको ऐसी बात कान से श्रवण करना भी है।
। प्रकाशक साजाबहादुर लाला मुखदेव सहार
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