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कयाई पुत्र रचावरत्त कालसमयंसि अयमेयारो अझ थिए चिंति९ मणोंगए संकप्पे समुप्पजित्था--एवं खलु कणगरहे राया रजेय जाव पुत्ते वियंगे ॥ तं जतिणं अहं दारगं पयाय नि त सेयं बल मम तं दारगं कणगरहस्स रहस्सियं चेत्र संरक्खमाणीते संगोत्रमाणीए बिहरित्तर, तिकटु, एवं संपेहेतिरत्ता तेयलि पुत्त अमचं सहावेति सहावेत्ता एवं क्यासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! कणगरहे राया रजेय जाव वियंगेह, तं जतिणं अहं देवाणप्पिया ! दारगं पयायामि, ततेणं तुम
कणगरहस्स रहस्सिय तंत्र मणुपुठवणं संरक्समाणे संगोवमाणे संबडेहि ॥ एकदा पापती रागी को पूर्व रात्रि में ऐसा विचार का किनारप राजा राग्य पावत् कोहगार में मलित होने से जो कोई पुजवा सको यावत् अंगोपांग से हीन करता है. इस से जो कोई पुत्र हो तो कनकरय राजा से गुप्त रखकर उस का रक्षण करना मुं श्रेय . ऐसा विचार । र सीपुर समास्य को बुलाया और कहा, महो देवानुप्रय! कनकरय राजा पावत् पुत्रों को
गोपग से न SHIT. इससे ओ देवानुपिय! मुझे जो कोई पुत्र होवे उस को कनकरय है। 1रमा में गुब रमा वेगम करना. असहाय बाल मासे पुक होकर गौवन अस्व. को
++ पहनानायकथा का प्रयम धुमन्य 42
48N सलीपुत्र का दावा अध्ययन
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