________________
सूत्र
अर्थ
अनुवादक बालब्रह्मवारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
संसग्गिं माइहिं ॥ २ ॥ अणिय प्रमाआ साहुहायंती इरिण खमइाहं ॥ जायें चरितो, ततो दुखाइं पांव ॥ ३ ॥ तथा होण गुणो, होउ सुह गुरु जोगाइ, जणिय सेवंगा पुण्ग सुरूयो, जायइ चिचड्डूमाणे सस हरु || ४ णायज्झयणं सम्मत्तं ॥ १० ॥ *
॥ दसमं
वश कुशील आदि संसर्ग से क्षति आदि सधु के गुणों से सर्वथा हीन होते हैं ॥ २ ॥ जो प्रमादी बना हुवा साधु क्षमा आदि गुणों से हीन होता है; उस का चारित्र नष्ट होता है, तत्पश्चात् दुःख को प्राप्त होता है || ३ || जैसे शुक्ल पक्ष का चंद्र वृद्धि पाता है वैसे ही हीन गुणवाला होने पर भी सद्गुरु संयोग से वैराग्यबन्त व सुरूप होता है. यह दशवा अध्ययन संपूर्ण हुबा ॥ १० ॥
•
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
• प्रकाशक राजाबहादर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रमादजा ●
४६०
www.jainelibrary.org