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________________ कपनबादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी, वावित्ति णिवेएति ॥ ततेणं जिणपालिए अम्यापियरो मित्तणाति जाव परियणेणं सदि रोयमाणाति बहुति लोइयाति मयकिच्चाई करेंति, बहूइ लोइयाति मयकिच्चाई करसा कालेणं विगय सोया जाता ॥ ४५ ॥ ततेणं जिणपालियं अन्नयाकयाई सुहासण वरगया अम्मापियरो एवं क्यासी-कहणं पुत्ता ! जिग रखिए कालगए ? ॥ ततेणं से जिणपालिए अम्मापिउणं लवणस्मुद्दातारंच कालियवाय समुत्थाणं च पोयवहणविवितिच, फलहखंडआसातणंच, रयणदीवुत्तारंच, रयणदीन देवया गिण्हणंच, भोगभोगाति भुंजमाणा, रयणदीवदेवया अप्पहणच, सूलाइया मिनपालने मातपिता स्वजन संबंधी इत्यादि परिजन की साथ रुदन करते हुए मन लोकाचार मुत्यु क्रिया की और कालांतर में शोक रहिन हुप ॥ ४५ ॥ एकदा जिनपाल का सुखसे बैठे थे देखकर उन माता पिता पूछने लगे अहो पुत्र ! जिनरक्षित कैसे काल धर्म को प्राप्त हुवा ? तब जिनपालने उन के मात पिता को लवण समुद्र में जानेका, अकाल में नवीन होने का, जहाज दुपने का, दोनों भाइयोंने पठिया पकडा उस का, रत्नद्वीप में जाने का, रत्नवीपा देवी के जाने का, धन की साथ भोगोपभोग करने का, सरप देवी का जाने का, शूलीपर रहा हुषा पुरुर देखने का, शलग यस पर मारूढ होने का, रत्नदीप काशक-राजाबहादुर कारवटेचमहायजी बाळाप्रसादजी. 2031 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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