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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋan
आयसति, पत्थयति, पीहेह अभिलसति, सेणं इहभः चेव बहुणं समणाणं बहूणं समणीणं, बहूणं साक्याणं, बहुणं सावियाणं जाव संसार भणुपहिस्सति, जहावा से जिणरक्खिए ( गाथा ) छलिओ भवयक्खंतो, निरावयक्खो गतो अविग्घेणं।। तम्हा पत्रयणसारे, निरावयक्खेण भवियम् ॥ ॥ भोगं अवयक्संतो पडति संसार सायरे पोरे ॥ भोगेहिं निक्खयक्खा, तरंतिं संसार कतारं ॥ २ ॥ ४२ ॥ ततेणं सारयणहीवदेवया जेणेव जिणपालए तेणेव उवा
गन्छइ २ चा बहूहि अणुलोमेहि पडिलोमेहिय, रोहियम उएहिय सिंगारहिय कलुणेहिय करेंगे, प्रार्थना करेंगे इच्छा व भीमलाषा करेंगे यह इस भव में बहुन साधु, साध्वी, प्रारक व श्राविका में निन्दा पावेंगे यावत् संसार में परिभ्रमण करेंगे, इस की गाथा का अर्थ कहते हैं. जो रस्नदीपा देवी से
लित होकर देखन लगा वह दुःखित हुना और जिसने देखा नहीं वह निर्षिअपने स्वस्थान पहुच गया. इसलिये प्रवचन शस्त्र के सार के ज्ञाता को चित है कि वा विषय संबंध से सदैव निरपेक्षित र ॥१॥ जो विषय वासना में पड़ता है वह इस घोर संसार समुद्र में परिभ्रमण करता है और भोगों में जो इन राहत होता है वह संसार समुद्र को पार होता है. ॥ ४२ ॥ तत्पश्चात बा रमईपा देगी जिनपाल की
धकाधक राजाकाादुर मासुखदरसायनी वाला प्रसादजी.
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