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अर्थ
44 अनुवादक-याला चारीमुनि श्री नमो
भवभय सुरभिकुसुमवुद्धिं पमुचमाणी || २ || माणामणि कणगरयग, घंटिप विस्वणि नेउरमेहल भूसणरबणं ॥ दिसाओ विदिसाओ पूरयंति, वयणमिणत्रयति सासकला || ३ ||होला वसुलागोला नाहदइया पियरयण कंतसामिय णिग्घिणाणि निछकत्थिष्ण॥ . निक्किया अकयणुय सिढिलभाव निल्लज लुक्ख अकलुण जिणरक्षिय मुज्झहियय रखिग || ४ || हुज्जुज्जसि, एक्कियं अनाहं अबंधत्रं तुज्झचलण उववायकारियं, ..उझियममधणं गुणसंकरहूं, तुमे विहुणा णसमत्था जीविउ खनंवि ॥ ५ ॥ इमस्सओ अग अझसमगर विविध सावयस्याउलघरस्त रयणागरस्तमज्झे अप्पाणं बहेमि
इंबित ! बल्लभ ! प्यारे ! रमण [कांत ! निर्दयी ! निःस्नेही ! क्लीव ! दुर्भागी ! कृतघ्नी ! शिथिल | स्वभावी ! निर्लज ! लुक्ख ! निष्ठूर ! जिन रक्षित मेरे हृदय की तू रक्षा कर, मेरे समान इस जगत | अनाथ अबंधन कोई मत दोषो. मैं तेरे चरण की सेवा करनेवाली हूं मुझे स्यांगना योग्य नहीं हैं. महो गुणशंकर ! मैं तेरे विना क्षण मात्र भी जीवित नहीं रहूंगा, अनेक प्रहार के मत्स्य कच्छ विविध प्रकार के स्वापद जळचर जीव बगैरह सेंकडो यावत् भरे हुवा है ऐसे इसरत्नाकर में तू मेरी रक्षाकर, नहीं तो | मैं तेरी सपक्ष इस में डूब मरूंगी. तू एक बार पीछा कर कर देख, तुझ यदि काम आया हो तो एक
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● प्रकाशक अनाचार काका सुखदेव सहायत्री महामारी
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