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टांझज्ञताधकथा का प्रथम भूतकाघ 4A
गेण्हति २ नेणेय पासायडिसए तेणेव उवागच्छद २ असुभ पोग्गला बहारं करोति २ मुहम गलपक्ख कति २ त्ता ततो पच्छा तेहिं सद्धिं विउलात भोग भोगाति भजमाणी विहरति ॥ कल्लाकलंच अमयफल ति उवर्गति ॥ १८ ॥ ततेणं सा रयणदीव देवया मकरयणसंदमणं सुट्टिएण लवणाहिराणा लवण समुद्दे
सत्तखुत्तो अणपरियायव्येइ, किंचि तत्थ तगंवा पत्तं कटुवा कयवरवा असुषंइयं :दुगनिगंध मक्खं तंसव्यं आहुणियं सत्तखत्तो एगने एडेय तिकटु नियुत्ता ॥ १९ ॥ ततेणं सारयणदीव देवया ते मागदिय दारगे एवं क्यासी-एवं खलु - को उन दोनों पाकंदिय पुत्रों को मथ लेकर अपने ममावतंसक पर गई. यहां अपने शरीर के अन्नम अपनोज्ञ पुद्गलों दूर किये. शुभ पुद्गों पर किये. और उन दोनों की माथ विएट भोग भोगनी हुइ विचरने लगी. वैने ही कालोकाल अमृतफल लाकर देने लगी. ॥ १८ ॥ लवण पमुद्र में जो कुच्छ तण, पत्र, काष्ट, कचार वगैरह अशुचाली वस्तु हो उन सब को इक्कीम वक्त नीकालार स्वच्छ करने को शक देवेन्द्र से स्थापित किये हुो लवण समुद्र के अघिपनि देवान इस रवीग नामक देश को नियुक्त कोथी. ॥ २१ ॥ इम मे रस द्वैपा देवीने अन माकंदिय पुष को, कहा
जिनरक्ष जिनपाल का नववा अध्ययन 4.28
अर्थ
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