________________
अर्थ
पनवादक बालब्रह्मचारी ने श्री ऋषिजी ++
॥ १२ ॥ तरसण पासवार्डस स्वर्णदीव देवया णाम देवी - पश्विसति पा चंडा, रुदा साहस्तिया ॥ १३ ॥ तस्मणं पासाथ डिसयस्स चाहसि वरि वडा, प०किहा किण्हो भासा ॥ १४ ॥ ततेण ते मार्गदिय दास्या तेण फलयस्वणं उवज्झमाणा २ रणदीवे तेणं संवढायावि होत्था । ततण ते मार्गदिये दारया थाह लहति२ चा मुहुत्ततरं आसासंति फलगखंड त्रिसजति, २ता रथनदीवं उत्तरति २ फलाण करें ते, करेता, फलानि आहारति २ जालिएराज मग्गणगत्रे सणं करेंति २ · लिएर णि फांडेति २, नालिएररस तिलगं अण्णमस्स गलाइ अम्भगति र पुक्खरिणी
चमन, प्रसन्नहारी, दर्शनीय, अभिरूप व प्रतिरूप था ॥ १२ ॥ उसे प्रामादात्रसंक में रस्नाईप नाम की देवी रहनी थी, वह पापी, मखंड, रुद्र, क्षुद्र, व स हसिक थी ॥ १३॥
सप्रासादक की चारों
दिशि में चार बनखण्ड थे वह कृष्णवले व कृष्णा भास थे ॥ १४ ॥ उक्त माकंदिय के पुत्रों उस (काट के पटिये से रसनईप नामक द्वीप की पास आये, वहां थोडा और काल का पटिये छंड दिया, रत्नद्वीप के पार उतरे, व की गवेषणा करने लगे, फल लाकर उन का आहार किया, फोर उस के तल से दोनों ने परस्पर अपने २ गात्रों का मर्दन किया,
पानी देख कर आश्वासन लिया. क्षुधा मे पीडित होने से फत्र पुष्पादि नालिएर लाकर उस को फोडकर तत्पश्च व. पुष्करणी में जाकर स्नान
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
●प्रकाशक- राजाबहादुर का सुखदेव महायनी ज्वालाप्रसादी •
४२४
www.jainelibrary.org