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________________ - ३११ बलयति ॥ १३६ ॥ ततेणं कुंभएराया मिहिलाएरायहाणीए-तत्थ तत्थ, तहिं तहिं, देसंदेसे बहुओ महाणस सालाओ करेइ, तत्थणं बहवे मणुयादिन्नभइभत्तवेयणा, विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडेंति २, जे जहा आगछति तं पंत्थियावा पहियावा, करोडियावा, कप्पडियावा, पासंडत्थावा, गिहत्थावा, तस्सय तहा आसत्थरसय विसत्थस्सय सुहासणबरगयस्स, तं विउलं असणं पाणं स्वाइमं साइमं परिभायमाणा परिवेसमाणा विहरति ॥ १३७ ॥ ततेणं मिहिलाए सिंघाडगतिग जाव बहुजणो अन्नमन्मस्स एयमाइक्खति-एवं खलु देवाणुप्पिया ! कुंभगस्सरनो भवणंसि दान देने लगे. ॥ १३६ ॥ कुंभ राजाने भी स्थान, स्थान,पाडों में पोलोंपे वगैरह बहुत स्थान भोजन शाला स्थापित की. उस में बहुत मनुष्यों को देने केलिये पानी, भोजन, व्यंजन दाल शाग और विपूल भशनादि चारों प्रकार के आहार तैयार: कराते थे. और वहां जो कोइ प्रार्थिक, पथिक, कटिक व कापिडायों प्राश्वस्थ व गृहस्थी आते थे उन को वैसे ही आश्वासन विश्वाम देकर सुखरूप आसन पर बैठाकर उक्त ॐ भोजनादि जिमाते थे. ॥ १३७ ॥ अव मिथिला नगरी के श्रृंग.टक त्रिक चौक यावत् राज्य मार्ग में 13 लोगों परस्पर ऐसा बोलने लगे-कि अहो देवानुप्रिय ! कुंभ राजा के भवन में सर्मा प्रकार के कार्य गुण HP षष्टानहाताधर्षकथा की प्रथम श्रतस्कन्थ +16+ श्रीमल्लीनाथजी का पाठवा अध्ययन HEP । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jah Education International
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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