________________
सूत्र
अर्थ
4 अनुवादक- वालाचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
उत्तर वेउनियाई रूई विउव्वति २ ता ताए उक्किंडाए जाव वीइत्रयमाणा जेणेव जंबुद्दीवे भारहवासे जेणेव महिलारायहाणी जेणेव कुंभगस्सर नोभवणे तेणेचा उवागच्छइ तेणेव उवागछित्ता कुंभगस्सरन्नो भवणसिं तिणिकोडिसया जाव साहरंति ॥ जेशव वेसमणदेवे तेणेव उनागंच्छंति रत्ता करयल जात्र पञ्चपिणंति ॥ सतेणं से वेसमणदेवे जेणेव सके देविंददेवराया तेणेव उवागच्छइ २ ता करयल जात्र पञ्चपिति ॥ १३५ ॥ ततेणं मल्लीअरहा कल्लाकलिं जात्र मागहओ पातरासोति चहुणं समाहाण्य, अणाहाजय, पंथियाणय, पहियाणय, करोडियाणय, कप्पडियाणय, एगमेगं हिरण्णकोडि अटु अणूंगात सय सदस्साई, इमेयारूवं अत्थसंपयाणं व्यतिक्रम करते जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में मिथिला नगरी के कुंभ राजा के भवन की पास आये और उक्त सुर्वण महोर रूप संपदा लाकर रखी. फीर वे वैश्रमण देव के पास पीछे आये और उनकी आज्ञा पीछी देदी. वैश्रमण देव भी शक्रदेवेन्द्र की पास आये और उन को हाथ जोडकर यावत् आशा पीछी दी. ॥ १३५ ॥ अत्र मल्ली अरिहंत कालो काल प्रातःकाल से बहुत सनाय, अनाथ बंदीजन प्रार्थिक जनो कोटिक सन्यासी और कापडिये कपटाचारी वगैरह अनेक लोगोंको प्रतिदिन ए. क्रोड आख्यातीलाख सौनेये
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
• प्रकाष राजावादूर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी ●
१९८
www.jainelibrary.org