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________________ 48 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक पा समएणं समस्त आसणं चलति, ततेणं से सके देविंद देवराया आसणं चलियं पासति २त्ता ओहिं परं जति २त्ता मल्लं अरहं उहिणा आभोएति २त्ता इमेयारुचे अज्झत्थिए जात्र समुप्पजेत्था एवं खलु जंबुद्दीवंदीवे भारहेवासे मिहिलाए कुंभगस्तरन्ना मल्लीअरहा निक्खामिस्सामित्ति मणं पहारेति । तं जियमेतिय पचपन्न मणागयाणं सक्काणं अरहंताणं भगवंताणं निक्खममाणाणं इमेवारूवं अत्थ संपयाणं दलतित्तए॥ तं जहा गाहा तिन्नत्रय कोडिसया, अट्ठावीस चहार्ति कोडीओ ॥ असियंच सयसहस्साणं दानंदलयति अरहाणं ॥ १ ॥ एवं संपेहइ २ता वेसमणं देवं सद्दावेति २त्ता एवं त्र्यामी एवं खलु देव णुपिया ! जंबूद्दीवेदी काल उस समय शक देवेन्द्र का आसन चलायमान हुवा, शक्र देवेन्द्रने आसन चलित हुवा देख अवधि ज्ञान प्रयुंजा और अवधि ज्ञान से मल्लीनाथ अरिहंत को देखे देखकर ऐसा विचार हुवा कि इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में मिथिला नगरी के कुंभ राजा के वहां मल्लीनाथ अरिहंतने दीक्षा लेने का मन में इरादा किया है इस पे अरिहंत भगवंत क दीक्षित होने को इतनी धन संपदा देने का अतीत वर्तमान व अनागत शकेन्द्र का जीत व्यवहार है सो कहते हैं. तीन सो क्रंड [ तीन अब्ज ] अट्यासी कोड, अस्सी लाख सुवर्ण महर अरिहंत दान देते हैं. ऐसा विचार कर वैश्रवण [कुबेर ] भंडारी को बोलाया और कहा Jain Education International For Personal & Private Use Only ० क शक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहाय जी ज्यालाप्रमादजी • ३९.६ www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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