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बिहोत्था ॥ नएणं जियमत्तु पामोक्खा छप्पिरायाणो कुंभयंरायं हय महिय पवर वीरघातिय विवडियं चिंद्धय पड़ागं केत्थप्पाणोधगयं दिसोदिसं पडिसहते ॥ ततेर्ण से कंभएराया जियसत्तु पामोइखे छहिंराईहिं हय महिय जाव पडिसेहितसमाणा अथामे अबले अवीरिए जाव अधारणिजमि तिकटु, सिग्धं तुरियं जाव चेइयं जेणेव महिला तेणव उवागच्छइ २त्ता मिथिलं अणुपविसइ २त्ता मिहिलाए दुवारानि पिहेइ गेहासजावे चिति॥तएणं ते जियसत्त पामोक्खा छप्पिरायाणा जेणेव महिला तेणेव उबागच्छति
२त्ता महिलं रायहाणि स्पचारणं णिरुच्चारं सम्वत्तो समंताओ रुभित्ताणं चिटुंति महाप्रबल सेना का घात किया, कुंभराजा के मान का मधन किया, बहुत सुभटों का विनाश किया, कुंभ राजा के राज्य चिन्ह धजा पताका नीचे पटकी, महामार के दुःख से पराभव पाये हुवे कुंभराजा के मुभटों पलायन करने लगे. जित शत्रु प्रमुख छही राजाओं में पगभव पाया हुआ यावत् अपनी सेना को दशों दिशा में पलायन करती हुई देखकर,कुंभराजा पराक्रम,बल व वीर्य रहिन हुभा यावत् उन की सेना का
प्रहार नी सहन हो सके वैसा जानकर शीघ्रमे मिथिला नगरी में आया; उन में प्रवेश कर उसके द्वारा Aध कराये, और गढरोह किया. जित शतु प्रमुख छही राजाओं मिथिला नगरी में आये. और मिथिला 18गरी के वारि नीकलन के सब द्वारों का चारों दिशाओं में संघटन कर रहने लगे. ॥११६॥ मिथिला नगरी
+ पठाजवातावर्षकथा का प्रथम-श्रतस्क
श्री मल्लनाथनी का अठवा अध्ययन *
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