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पष्टमसापचा कायम तस्कन्ध 4Me
एवं क्यासी-खिप्पणमेव भोदेवाणुप्पिया ! रायमग्ग मोगाढंसि पुष्फमंडसि माणाविक पंचवण्णेहिं तंदुलेहि जयरं आलिहह, तरसेणं बहुमझदसभाए पट्टयं एह जाव पचमिति ॥ ७६ ॥ ततेणं से रुथी कुणालाहिबई हस्थिखंधवरगए, उ. रंगिणीए मेणार महया भचडा अतेउर परिपाल सहि संपरिवुडे, सुबाहुदारियं पुरतोकटु जणव रायमग्गा जणेव पप्फमंडवे तेणेव उवागम्छति । ताहत्थिखंधातो पन्ना रुहइ २त्ता पुप्फमडवे अणुपविसइ २ त्ता सीहासणवरगते पुरस्थाभिमुहे संनिसन्ने ॥७॥
ततणं ताआ अंतउरियाआ सुब दारियं पट्टसि हुरहंति २ सीयापीयरहिं कलसेहिं = मुवर्णकार (सनार) को बलाये और कहा कि राजमार्ग पर रहास पुष्प मंडप में विविध प्रकार के पांच वर्ष वाले यावलों से नगर की भालेखना करो. उस के मध्य में एक पाट बनाओ यावत् उनोने चैम ही करके उनकी आवा पीछी दी. ॥ ७६ ॥ अब वह कुणाल देश का कसी राजा अपनी सुबाहु पुत्री आगे हमीपर बैठकर चतुरंगिनी सेना सहित बडे २ भट यावत् अंतपुर के परिवार से. परकर हुवे रान मार्ग में पुष्प मंडप में गये. और हाथी पर मे उतर कर पुष्प मंडड में प्रवेश किया, वहां सिंहासनपर पूर्वाभिमुख से ठे. ॥ ७७ ॥ उन अन्नापुर की अपना रानियोंने मुबाहु.T पुत्री को उस पाटपर बैठाई और तर पीले ( चांदी मुवर्ण क) करों से मान, कराया. सर्वा अलंकार से
- श्री मल्लीनाथजी का
अथ
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