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सत्र
अनुवादक-बालिकासमुनि श्री अमोलक ऋषिनी
तत्थ गं प्पि कुणालाहिबतिणामराया होत्था ॥तस्सणं रुप्पिस्स धूया धारिणीए अत्तया सुबाहु णामदारिया होत्या, सुकुमाला सरूवा रूवेणय जोवण्णय लावन्नेणय,उकिट्ठा अमिट स रा जायायावि हात्थ। ॥७३॥ तीमणं मुबाह दारियाए अन्नया चउम्मामिय मजलाए जाएगाव हात्था !७४ ।। ततण मे रुप्पो कुणाल हवइ सुबहुदारियाए चाउम्मासिय मजणयं उबट्टियं जाण २त्ताक डुबय पुरिसे सद्दावेइ २त्ता एवं वयासी-एवं खल देवाणुप्पिया ! मुबाहुदारियाए कल चाउम्मामिय मजणए भविसति ॥ तं तुभेणं रायमग्गमोगाढमि पुप्फ मडंच मे,जलयथलय द' द्वबण्णमल साहरह जाब सिरिदामगडं
ओलयति ॥ ७५ ॥ ततेणं से रुाप्प कुणालाहिवइ सुवण्णगारसेणिं सहावेद २ त्ता १ उपदेशमा मालकी नापका राजा की पुत्री व धारणी रानी की आत्मना सुबाहु नामकी लडकी थी. वर रूपयवन, लारण्य में उत्कृष्ट मुकामक, व उत्कृष्ट शरीर वाली थी. ॥७३॥ उम मुबाहु राज पुत्रीको एकदा चतगम स्नान का उतना आया. ॥ ४ ॥ रूपी र जाने अपन सुबह पुत्री का चतुर्षामिक स्नान का
पा आया हुआ ना कर के पुरुषों की बोल य और कहा कि बो देव नुप्रिय ! सुबहु पुत्री का कल चतुर्ग: स्नान का उत्तर होगा इसालय तुम गजमार्ग रहा हुवा पुष्प मंडप जलं पत्रक स्थ पन्न पांचों वर्ण के पुष्षों लावो यावत् एक श्रीदास गेंद बनायो ॥ ७५ ॥ फीर रूसी सजान ।।
काशक-राजावादरला मुखदरमहायजी बाबामसाक्षणी
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