SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 350
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४३ 40 पटइधर्मकथा का प्रथप श्रम मानविय वाग्छ लाला पालंज त तालुयं हिंगलग गगम कंदर लिंग अनागिरम अगामा लुगालत, मऊय अवचम्म उट्ठ गडदेम चौगाव मनु कणा समागय धमधमत मारुय •ि हर खन्फरुत झू मेर उभाग नगगणास। पुड घ जुम्मडग्इय भीमणमुई उडमुद्र कमकुलि५ महंत गर लोम मसाल गलबंन चलय कणं विगल दिप्पत लं यणं भिउडितडिजनिडलं नरसिरमाल परिणद्ध विड विचितं गोणस सुबद्ध गरेकर अवहालत पुप्फ. व महारपली भर उत्पन्न करें की लाल से माना एका उक्त नावालागवं ममा भार मग पहिन गफः मम न मुबाला, जलता हु। अंजनाबर पनि पीडालने में जो वर्ण हो । वर्ण या मुगल', अप. गंडस्थलवला. पति वटी छेटी नापिकावला. पोप मे धमाप करना दुग गुरु सना पुरुष, ११ भनक छिद्रास . परुषाका - प्रथा अवयो " और नल बटे लम्बाले वक्ष को मनादेक. नम डाको खडे न तु ) - नत्र क. कुपेन वाकर भृकुट के विकार सहित ललाटाला, मनुष्य के मस्तक की माला स वष्टिा किया हुग चिनवाडा, सों से बनाया हुवा कवच- ' श्रमलं नाथजी का आठवा अध्ययन 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy