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40 पटइधर्मकथा का प्रथप श्रम
मानविय वाग्छ लाला पालंज त तालुयं हिंगलग गगम कंदर लिंग अनागिरम अगामा लुगालत, मऊय अवचम्म उट्ठ गडदेम चौगाव मनु कणा समागय धमधमत मारुय •ि हर खन्फरुत झू मेर उभाग नगगणास। पुड घ जुम्मडग्इय भीमणमुई उडमुद्र कमकुलि५ महंत
गर लोम मसाल गलबंन चलय कणं विगल दिप्पत लं यणं भिउडितडिजनिडलं नरसिरमाल परिणद्ध विड विचितं गोणस सुबद्ध गरेकर अवहालत पुप्फ. व महारपली भर उत्पन्न करें की लाल से माना एका उक्त नावालागवं ममा भार मग पहिन गफः मम न मुबाला, जलता हु। अंजनाबर पनि पीडालने में जो वर्ण हो । वर्ण या मुगल', अप. गंडस्थलवला. पति वटी छेटी नापिकावला. पोप मे धमाप करना दुग गुरु सना पुरुष, ११ भनक छिद्रास . परुषाका - प्रथा अवयो " और
नल बटे लम्बाले वक्ष को मनादेक. नम डाको खडे न तु ) - नत्र क. कुपेन वाकर भृकुट के विकार सहित ललाटाला, मनुष्य के मस्तक की माला स वष्टिा किया हुग चिनवाडा, सों से बनाया हुवा कवच- '
श्रमलं नाथजी का आठवा अध्ययन
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