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पष्ट अज्ञाता धर्मकथा का-प्रथम श्रतस्क
सा पउमावतीदेवी नियगपरियालमहि संपरिबुडा मागेय नगरं मझं मज्झेणं निगच्छइ २ त्ता जेणेव पॉक्टहणि तेणव उवागच्छइ २ त्ता पोक्खगणं उग्गहति पोक्खराणि उगाहेत्ता जल मजणं जाव परमसूइ भूया उल्ल पडसाडयाजाई तत्य उप्पलाई जाव तत्थं गेण्डइ २ त्ता जेणेव नागघरए तेणव पाहरत्थ गमणाए ॥ ४६ ॥ ततणं सा पउमावतीएदेवीए दासचेडाओ बहुप्रो पुप्फफलग हत्थगयो धूवकडच्छुयं हत्थागयाओ पीटुओ समणुगच्छति ॥४७॥ ततेणं पउमावइदेवी सन्विड्डीए जावरवेणं जेणेव जागघरए तणव उवागच्छइ२त्ता नागघरं अणुपविसइ २त्ता लामहत्थग जावधूवडहइ२ 'ता पडिबुद्धिराय पडियाले माणी २ चिट्ठइ ॥ ४८ ॥ ततेणं ते पडिबुडिराया व्हायं अंतपुर में गइ. वहां न न किया यावत् धार्मिक कार्य के स्थपर आरूढ होकर माकेतपूर नगर की मध्य में होकर पुष्करणो की पाम गई पुष्करणी में प्रवेश कर जलमज्जा किया, यापत् परम शूचिभूत होकर भीगे हो वस्त्र साइत उत्पलादि कमलों लेकर नागधर तरफ जाने की नीकरी. ॥ ४६॥ पद्मावती देवी की पीछे हाथ में पुष फल व धूप की कडछ ओं लेकर दासियों चरने लगी. ॥ ४७ ।। पावती देवी विधि पूक नागघर की तरफ गइ अर उम में प्रवेश कर मयुर पीछे से झडकर प्रतिमा को स्वच्छ की यारत् धा कर के प्रबुद्ध राना का मार्ग प्रतीक्षा करती हुई विचरने लगी. ॥४८॥ अब प्रतिबुद्धि राजाने मान किया
41श्री मल्लांनाथजी का आठमा अध्ययन 4
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