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सूत्र
अर्थ
4 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोल ऋषी
उह तुरंग पर मग! विहग वलग किण्णर रुहरु साम चमरणला पउमलया भत्ति चित्तं महग्घं महरिहं विपुलं पुप्फ मंडव विराएह || तरसणंपुप्फ मंडवर बहुमज्झ देनभाए एगंमहं सिरिदामगंडं जाव गधद्वाणं मुयंत उल्लोयंसि उलएह २त्ता परमावर्ति देवीं परिबुद्धिओ पडिवाले माणा चिट्ठह ॥ तरणं ते कोडुबिया जात्र चिट्ठेति ॥ ४५ ॥ तलेणंसा परमावती देवीकलं कोटुंबिय पुरिस एवं क्यासी- खिप्पामेत्रभो देवाणाप्पया ! सागयणगर सतिर बाहिरियं आसिय समज्जियंओवाळित्त जाव पच्चपिणति ॥ तणं सापडावइ देवी दोचंप को बिय जाव एवं वयासी- खिप्पामेवं लहु करण जुत्तामेत्र उबट्ठा ॥ तणं सा पउमावइ देवी अंतो अंनेउरंसि व्हाया जाव धम्मियं जाणं पवहणं दुरुढ ॥ ततेणं
एक बड' मला का गेंद यावत् गंध का फैलाव करता हुआ बनावो. छत-चंदर बंधो और पद्मावती देवी वमा बुद्धि राजा की मार्ग प्रतक्षा करते हुए वहां रहो. कौटुम्बिक पुरुषों वैने ही सब कार्य करके वहां ही रह ॥ ४५ ॥ प्रभात होते पद्मावती देवीने कौटुम्बिक पुरुषों को बोलाकर कहा कि अहो देवनुप्रिय ! साकेतपुर नगर की अंदर व बाहिर संगंधित जल का छिडकाव करो, कचरा स्वच्छ करावी, दिपा रंगा बगे ह करके मुझे मेरी आज्ञा पोछी दो फीर पद्मावती देवीने कौटुम्बिक पुरुषों को दूसरी बार बोलाये व कहा मेरे शीघ्रवाल वाले बैल से युक्त यावत् रथ तैयार कर लो. तपश्चात वह पद्मावती देवी
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• प्राय राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी ०
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