________________
wwwinnamommom~
२७३
पष्ठान हातापर्पकथा का प्रथम श्रुतस्ध Rin
सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अहं कल्लं सेलएरापरिसिं आपुच्छित्ता पाडिहारियं पीढफगलसिमायारगं पञ्चप्पिणित्ता सेलगस्त अगगाररस पंथएअणगार वेयावच्चं करंटुवेत्ता वहिया अन्भजएणं जाव विहरित्तए, एवं संपेहेति २ त्ता कल्लं जेणेव सेलग रायरिसिं आपुच्छित्ता पाडिहारियं पीढ जाव पञ्चप्पिणंति २ त्ता पंथयंअणगारं वेयावच्चकर वेति २त्ता वहिया जाव विहरति॥७५॥ततेण सैपथए संलयस्स रायरिसिंस्स सेजा संथार उच्चारषासवणखलसिंघाण, मज आसहभसज्ज भत्तपागएणं अगिलाए विणरण । वेयावडियं करोत ॥ ७६ ॥ ततेणं सलए रायरिसी अन्नयाकय इकत्तिय चउम्मासियंसि विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं आहार माहारिए सुबहुंच मजाणपिए पुया- 4 को पुछकर पडियारे पद, बाजोट को पीछे देकर पंथक अनगार को सेला अनगार की वैश्यावृत्य के लिये रखकर अपन बाहिर विवरें. ऐमा विनार कर प्रता:काल होते शेलग राजर्षि को पुछकर पडेबारा पाट, पाटले बाजोट वगैरह पीछे देकर पंथ अनगार को वैश्यावृत्य के लिगे रख कर बाहिर पिचरने लग. ॥७॥ अब पंथक अनगार शेलग राजर्षि की शैय्या, संथारा, उच्चार, प्रसनण, श्लेष्म, नाक-का मद्य, औषध, भैपध, भक्तपान की अग्लानपने वैश्यावृत्य करने लग. ॥ ७॥ शेलग राजकिदा कार्तिक चतुमांमी के दिन अशन,पान, खादिम व सादिम का आहार का बहुत मद्यपान कर के पहिली की
+ सेलग राजर्षि का पांचा अध्ययन
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org