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________________ - पष्ट बताताधकथा का प्रथम श्रतस्कन्ध 4361 स्स फासुएसणिजेणं जाव तिगिच्छं आउटेह॥७-१॥ततेणं तिगिछिया मंडुएणरण्णा एवं . वुत्ता समाणा हट्ट तुट्ठा, सेलयस्स रायरिसीस्स आहापवित्तहि औसह भेसज्जेण भत्तपाणेहिं तिगिच्छं आउंटइ, मज्जपाणयंच से उवदिसंति ॥७२॥ततेणं तस्स सेलयस्स आहापवि. त्तिहिं जाव मजपाणएणं सेरोगायके उवसतेयावि होत्या, हटे जाव बलिए सरीर जाते ववगयरोगायके ॥ ७३ ॥ ततेणं से सेलए तंसि रोयायकसि उवसंतसि समाणांस तंसि विउल असणं पाणं खाइमं साइमं मजपाणएय मुच्छिए गढिए गिछे शेळग अनमार की मासुक एषणिक औषधियों से थावद चिकित्सा करो ॥ ७७॥ मंदुक राजा के ऐसे कहने पर चिकित्सकों बहुत इष्ट तुष्ट हुए और शेलग अनगार की यथायोग्य औषधि, भैषज्य, भक्त पानसे चिकित्सा करने लगे और मद्यपान करने का कहा ॥७२॥ यथा योग्य और औषधोपचार यावत् मद्यपान से उन शेलगराजर्षि का रोगउपशांत हुवा. शरीर हृष्ठ तुष्ट यावत् रोग रहित हुवा ॥७३॥ रन का रोग उपशांत होने पर भी विपुल अशन, पान, खादिम व स्वादिम व मद्यपान में मूच्छित,गद होकर पार्श्वस्थ, पार्थस्थहिवारी १ मद्यपान से मदिरा प्रासनकी ऐसा ग्रहण करना नहीं क्योंकी उन को साधुके योग्य उपचार करनेका इसमें कथन है। और साधु मादिरा के त्यागी होते हैं इस से यहां नशा उत्पन्न होने बैंसी कोई बस्तु जानना चाहिये. + सेलग राजर्षि का पांचवा अध्ययन 4 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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