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________________ » टाङ्ग जानाधकथा का प्रथम शुवध अगारस्स तं इन्भाइयं अणगार सहस्सं सीसत्ताए दलयति ॥ ३० ॥ ततेणं से थावच्चापुत्ते अणगारे अन्नयाकयाइं अरहं अरिट्ठनमि वंदइ नमसइ २ त्ता एवं वयासी इच्छामिणं ति ! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाए समाणे सहसणं अणगारेणंसाई वहिया जणश्य विहारं विहरित्तए ? अहासुहं ॥ ३१ ॥ ततेणं से थावच्चापत्ते अणगारे सहरसे गं सहिं तेणं उरालेणं उदग्गेणं प्यतेणं पग्गहिएणं बहिया जणवय विहार विहरइ ॥३२॥ तेणं कालेणं सेणं समपणं सलग पुरणामेणगरे होत्था वण्णओ, मभमि भाग उज्जाणे, सेलए राया, पउमावइदेवी, महुए कुमारे जुबराया ॥ तस्सणं सेलगस्स वगैरह एक हजार अनगार को थावर्चा पुत्र अनगार के शिष्य बनाये ॥३०॥ तब वह थावर्चा पुत्र अनगार अरिहंत टिनको वंदना नमस्कार कर ऐमा बोले कि अहो भगवन्! एक हजार शिष्यों सहित बाहिर जनपः देशमें विहार करने को चहता हूं. भगवानने उत्तर दिया जैसे तुम को सुख होवे वैसे करो ॥ ३१ ॥ अव थावर्चा पुष उन एक हजार साधुओं सहित बाहिर जनपद देश चने लग ॥ ३२ ॥ उस काल उस समय में मेलगपुर नाम का नगर था, उस की ईशानकून में सुभूमि भाग नाम का उद्यान था, उसमें शेलग नाम का राजा था. उसमोपद्मावती देवी थी,उम को मंडुक कपार था, उस सेला राजा को पंथक प्रमुख पांव सोमंत्री थे, वे उत्सातिका वयिकादि चारों बुद्धि से संपन्न । अर्थ सेलग राजर्ष का पांचवा अध्ययन 438* LE ॐ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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