SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुभदक- लब्रह्मचारीमुनि श्री अयो क ऋषिजीt असूणि विधि माणी२ एवं वय सी-जयवंजःयः पक्किामयव्यंजाया! घडयव्यं जाया!. परिमियन्वं जाया! अरिं च । अट्टे नो पमादयन्वं; जामेवदिसिं पाउब्मूया तामेवदिसिं पडिगया ॥ २६ ॥ ततेणं से थावच्चा पुत्ते पुरिससहरसेणं साई सयमेव पंचमुट्रियं लायं करोति जाव पवइए ॥ २७ ॥ ततेगं से थावच्चापत्ते अणगारे जाए इरिया समिए भासा समिए जाव विहरइ ॥२८॥ ततेणं थावच्च पुत्र अणगारे अरहओ अरिट्ठ नेमिस्स तहा रूवाणं राणं अंतिए सामाइयमाइयाई चोदमपुवाई अहिज्जति २ बहूहिं जाव चउत्थ विहरति ॥ २९ ॥ ततेणं अरहा अरिट्ठनेमी थावच्चापुत्तस्स लगी अहो पुत्र ! समय में पराक्रम करना, अहो पुत्र! अच्छी क्रिया करनेमें धर्माराधना करनी अहो पुत्र समय चारित्र में अपना बल वीर्य फोडना, अहो पुत्र. ! इमकिंचिन्मात्र प्रमाद ही करना. यों कहकर सब अपने २ स्थान पीछ गये ॥ २६ ॥ फर थावर्चा पुत्रने एक हजार पुरुषों की साथ स्वयमेव पंच मुछि लोच किया. यावत् दीक्षित बने ॥ २७ ॥ अन वह थावर्चा पुत्र अनगार बनकर ईर्या समिति भाषः समिति सहित यावत् विचरने लगे ॥ २८ ॥ कर वह थार्चा पुत्र अरहंत अरिष्ट नेमी के तथरूप स्थविरों के पास सामायिकादि चौदह पूर्व का अध्ययन करके बहुन उपनाम बोले यावत् नपश्चर्या करके तप व संयम से भात्मा को भ.बने हुवे विचरने लगे ॥ २९ ॥ श्री रहंत अरिष्ठ नेमीनाथने इकम प्रकाशक-राजाबहा लाममुखदवसहायजी ज्वालाममाट। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy