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14}. कोविय पुरिसे सहावेइ. २ एवं वयांसी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिय चाउरंगीणी सेण
सजेह विजयंचगंधहरिय उवट्ठवेह तेवि तहेव उट्ठवेति जाव पज्जुवासइ ॥ १५ ॥ थावचापुत्तेविणिग्गहे जहा मेहो तहेव धम्म सोच्चणिसम्म जेणेष चावचा “गाहावइणी सेणेव उवागच्छद ३ त्ता पायग्गहणं करइ जहा मेहस्स तहाचेव निवेयणा जाहे जो संचाएति विसयाणु लामाहिग, · विसयपडिकूलाहिय बहुहि आघवणाहिय पण्णवणाहिय, समवणाहिय, आघवित्तएवा ४ ताहे अकामिया व थावच्चा
पुत्तस्स दारगरस निक्खमण मणुम्मण्णस्था॥१६॥ततेण सा थावच्चागाहावइणी आसणाओ लाये. कृष्ण वासुदेव समुद्र विजयादि प्रमुख दश दशार इत्यादि सब परिवार से परबरे हुवे कि नामक गंध हस्ती पर बैठकर नंदन वम में श्री भरिष्ट नेमीनाथ की सेवा भक्ति करने लगे ॥५॥ मथम अध्ययन में मेघ कुमार का भगवान के दर्शन के लिये निकलने का कथन है वैसे ही थावची पत्र
का कथन जानना. वैसे ही धर्म पुनकर थावर्चा गायापतिनी की पास गये, उन के पांच में पटा और मनसे अपना वैराग्यभाष मेधकुमारने बताया था वैसे ही इसने बतलाया. आता पुत्र दोनों का संघाद
हुवा परंतु जब वह अपने पुत्र को विषय के अनुकूल व प्रतिकूल वचनों से, विज्ञप्ति वचनों व स्नेह के वचनों से सरझाने में असमर्थ हुई. तब थावर्ग पुत्र का दीक्षा महोत्सव करना मान्य किया ॥ १६ ॥
418 पाङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रतस्कन्धर
लग राजा का पांच अध्ययन 4.
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