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सावियाणं, हीलणिज्जे, परलोगेवियणं आगच्छइ, बहुणं दंडगाणं जाय अणुपरियदृइ; जहा से कुम्मए अगुतिदिए ॥ १४ ॥ ततेणं ते पावसियालगा जेणेव से दोच्चए कुम्मए तेणेव उवागच्छति २ त्ता तं कुम्मगं सवतो समंता उव्वतेति जाव देतेहिं अक्खोडेंति जाव नो चेवणं कारत्तए ॥ ततेणं ते पावसियालगा दोच्चंपि जाव नो संचाएति तस्स कुम्मगस्स किंचि आवाहवा विवाहंवा जाव छविच्छेयंवा करेत्तए,तासंता तंता परितंता णिविण्णा समाणा जामेवादिसं पाउब्भूया तामेवदिसि पडिगय ॥ ततेणं
से कुम्मए ते पावसियालए चिरंगए दूरंगए जाणित्ता, सणियं २ गीवं जीणेइ २त्ता करेंगे वे इस भव में बहुत साधु साधी, श्रावक व श्राविका में हीलना, निंदा, खिमना पायेंगे और परलोक में बहुत दंड मिलगा यावत् अनादि अनंत चतुर्गतिक संसार में परिभ्रमण करेंगे ॥ १४ ॥ अब वे पापी दोनों शृगालक उस दूसरे कूर्म की पास गये, उस को उठाया यावत् दांतों से काटने लगे परंतु । उसको किसी प्रकार से पंडा कर सके नहीं. इस से दूसरी वक्त एकांत गये यावत् उस कोकिसी प्रकार से
पीडा नहीं कर सके. इस से संतप्त यावत् निराश बने हुवे अपने स्थान पीछे चले गये. जब दोनों पापी 1. शगालकों को चल गये जान कर उस दूरे कूर्मने पहिले गरदन वाहिर निकाली और चारों तरफ देखा..।
अनुवादक-बालब्रह्म चारा मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 22
.. प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी .
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