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अर्थ
अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ि
दिया गच्छिण्यावि चिट्ठति ॥ ५ ॥ तणं ताओ मयंगतीर दहातो अष्णवाकयाईं सूरियंसि चिरअत्थ मियंसि लुलियाए संज्झाए पविरल माणुससि णिसंत पडनिसंतांस समाणं सिदुबे कुम्मगा आहारत्था आहारंगवेसमाणा सणियं २ उत्तरंति, तरसेव मयंग तीरदहस्त परिपेरंतेणं सव्वतो समंता परिघोलमाणा २, विति कप्पमाणा विहरति ॥ ६ ॥ तयणंतरंचणं ते पावसियालगा आहारत्था जात्र आहारं व गवे - समाणा, मालुया कच्छयाओ पडिणिक्खमंति पडिणिक्खमित्ता जेणेव मयंगतीरद्द तेणेव उत्रागच्छंत २ ता तस्सेव मयंगतीरद्दहस्स परिपेरंतेणं परिघोलेमाणा २ विकिपेमाणा विहरति ॥ ७ ॥ ततेनं ते पात्रमियाला ते कुम्मए पासंति२त्ता जेणेव से या संध्या में फरनेवाले व दिन को गुप्त स्थान में छिपकर बैठनेवाले थे || ५ || एकदा उस मृत गंगाद्रह { में से सूर्यास्त होते, संध्या का वक्त होने पर और मनुष्य का संचारबंध होने पर आहार के अर्थी दो कूर्त आहार की गवेषणा करते हुये शनैः उस द्रह से बाहिर निकलकर उसकी आसपास आजीदेविका के लिये फोरने लगे || ६ || तदनंतर आहार के अर्थी उक्त दोनों पापीं शृगालक उस मालुया कच्छ में से निकलकर मृतगंगाद्रह की पास गये और उस के चारों तरफ भाजीविका के लिये फिरने
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० प्रकाशक- राजाबहादुर लाला मुलकारायजी ज्वालाप्रसादभी •
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