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"TA पष्टाङ्ग जसाधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध
पत्त सहस्स पत्त केसर पुप्फोवचिए पासादिए दरिसणिजे अभिरुवे पडिरूवै ॥ २ ॥ तस्थणं बहुणं मच्छाणय, कच्छभाणय, गाहाणय, मगराणय, सुंसमाराणय, सयाणिय सहस्मियाणिय, सयसहस्सियाणिय, जूहाई, निम्भयाई, णिरुब्धिवाई, सुहं सुहेणं अभिरममाणाइ २ विहरति ॥ ३ ॥ तस्सणं मयंगतीर दहस्स अदूरसामंत एस्थण महं एगे मालुयाकच्छर होत्था, वण्णओ ॥ ४ ॥ तत्वणं दुवे पात्र सियालगा परिवसंति, पावा चंड। रुद्दा तलछा साहस्तिया लोहियपाणीआ आमिसत्था, आमि
साहारा, आमिस प्पिया, आमिसलोला, आमिसंच गेवसमाणा, रतवियालचारिणो, अभिरून प्रतिरूप था.॥२॥ उस द्रह में बहुन मत्स्य, कच्छ, गाहा, मगर मुसुमार ३ हजारों, लाखों अन्य जलचर प्राणियों क Rमुह उद्वेग रहिन सुख पूर्वक विचरते थे. ॥ ३ ॥ उस मृगंगाद्र के पास एक मालुया कच्छ था. वह वर्णन योग्य था. ॥ ४॥ उमालुया कच्छ में दो पापाचरण करने वाले शगाल ( सियाल) रहते थे. वे पापी, प्रचंड, भयानक होने से गैद्र, आत्यंत लालची होने से तलिच्छ । निडर हाने से साहमिक, रुधिर के हाथ वाले, मांस के इरछक, पामाहार करने वाले, पोस की से बाले, मांस के इच्छक, मांस के लोलुपी, मांसाहार की गोषणा करनेवाले, रात्रि
दो कांच का चौथा अध्ययन 42
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