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________________ अर्थ +8+ षष्टाङ्ग ज्ञातार्धमकथा का प्रथम श्रुतस्कंध 4 तयं कज्जं ॥ एत्थ दोसे ठियया अंडयग्गाही उदाहरणं ॥ २ ॥ तं कत्थमइ दुब्यलेण तन्विहायरिय विरहवा, विशेयगहणचणेणं णाणावरणोदणंच ॥ ३ ॥ हेऊदारणा संभवेयसइ सुहु जंण बुझेज्जा ॥ सव्वण्णुमयमक्ति; तहा विइति चिंतइमइमं ॥४॥ अणवकय पराणुग्गह परायणा जं जिणा जयप्पत्ररा, जियरागदसो मोहाय हावाइ णो तेणं ॥ ५ ॥ तच्चं णायज्झयणं सम्मत्तं ॥ ३ ॥ Jain Education International व निःस्संदेह में दो सार्थवाह के पुत्र व मयूरी के अण्डे का शान्त ग्रहण करना || २ || यह संदेह होनेका कारन किसी स्थान बुद्धि की दुर्बलता, अथवा योग्य आचार्य का विरह अथवा अज्ञान का उदय होने से { होता है ॥ ३ ॥ हेतु दृष्टान्त, उदाहरण के असंभव होने से अच्छा नहीं जानता है वह सर्वश मार्ग में अवितथ्य है ऐसा चितवे ॥ ४ ॥ अनुपकारी पुरुषों पर भी उपकार करने में परायण, प्रधान, राग, द्वेष, जीतनेवाले, ऐसे वीतराग अन्यथा वादी नहीं होते हैं. यों पूर्ण निश्चय रखना. यह तीसरा अध्ययन संपूर्ण हुवा ॥ ३ ॥ :: For Personal & Private Use Only + मयुरी के अंडे का तीसरा अध्ययन 45 २११ www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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