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सूत्र
अर्थ
4. अनुवादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
पत्रइए समाणा पंचमहाव्यएमु छमुजावणिक एसु निग्गंथे पात्रयणे निसंकिए निक्कखिए निव्वितिगिच्छे, सेणं इह भेव चैत्र बहुणं समणाणं बहुणं समजीणं बहु सात्रयाणं बहुणं सावियाणं जाव वितिवतिस्सति ॥ २८ ॥ एवं खलु जंबु ! समणेणं भगवया महावीरेणं तच्चस्स णायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते ॥ तिबेमि ॥ तइयं णायज्झयणं सम्मत्तं || ३ || गाथा || जिणवर भासिय भावेसु भावसश्वसु भावओ मइमं, जो कुज्ज, संदेहं संदेहो णत्थि हेउति ॥ १ ॥ निस्संदेह तं पुण गुणहेउ जंतओ
आचार्य उपाध्याय की पास प्रवजित होकर पांच महाव्रत छ जीवनिकाय व निग्रंथ के प्रवचन में शंका, कक्षा व चितिमिच्छा रहित प्रवतेंगे, वे इस भव में बहुत साधु साध्वी, श्रावक व श्राविकाओं में सत्कार योग्य, सम्मान योग्य बनेंगे यावत् अनादि अनंत चतुर्गतिक संसार के अंत कर्ता होंगे ॥ २८ ॥ अहो जम्बू ! श्री श्रमण भगवंत ज्ञात पुत्रने ज्ञाता धर्मकथाङ्ग सूत्र के तीसरे अध्ययन का यह अर्थ कहा है. ( यह तीसरा अध्ययन संपूर्ण हुवा || ३ || अब इस दृष्टान्त का परमार्थ कहते हैं- श्री वीतरागदेव के प्रणित भावों में भाव सत्य, क्षायिकादि भावों में, बुद्धिमान मनुष्यों को संदेह करना यह मिथ्यात्व - दुःख का कारन है ॥ १ ॥ निस्संदेहपना सो गुन का हेतु है, इस से निःस्संदेहपना ही धारण करना. यहां संदेह
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• प्रकाशक राज्यबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसादजी ०
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