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पष्टाङ्गज्ञाताधमकथा का प्रथम श्रुतस्कंध ..
मंगलाइवत्थाइ पवर परिहिते पायविहारचारेणं जेणेव गुणसिलए चेइए । जेणेव थेरा भगवतो तेणेव उवागच्छति २ ता वदति नमंसति ॥ ५४ ॥ ततेणं थेराभगवंतो धण्णस्स सत्यत्राहस्स विचित्तं धम्म माइक्खंति ॥ ५५ ॥ ततेणं से धण्णे सत्थवाहे धम्म सोच्चाए एवं वयासी सहामिणं भंते ! निग्गथं पावयणे जाव पव्वतिते जाव बहणिवासाणि सामण्ण परियागं पाउणित्ता भसपच्चक्खातित्ता मासियाए संलेहणाए सर्द्धि भत्ताई अणसणाए छेदइत्ता कालमासे कालंकिच्चा सोहम्म
कप्पेदेवत्ताए उवबन्ने ॥ तत्थणं अत्थेगतियाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमातिं ठिती नमस्कार करने को जाना. ऐसा विचार कर उसने स्नान किया परिषदा में जाने योग्य वस्त्रों परिधान किये, और पावसे चलते हुए गुणशील उद्यान में स्थविर भगवंत की पास आकर उनको बेदना नमस्कार किया. ॥ ५४ ॥ उन स्थविर भगवंतने विचित्र प्रकार का धर्म कहा. ॥ ५५ ॥ पन्नासार्थवाहने ऐसा धर्म सुनकर ऐसे बोले कि अहो भगवन् ! निग्रन्थ के वचन में श्रद्धता हू, यावत् उन की पास प्रत्रजित हुए. बहुत वर्ष पर्यत साधु की पर्याय पालकर भक्त प्रत्याख्यान से एक मास की मलेखमाठ भक्त अनशन का छेदन कर क.ल के अवसर में काल कर सौधर्म देवलोक में दासा पने उत्पन्न हुए. वहां कितनेक
पन्न सार्थवाह का दूसरा अध्ययन 43
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