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2. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलस पिजी १
आभिसरमाणाई, मुडयाई थणियपिवंति, तउयकोमल कमलोवमेहि, हत्थेहिं गिाण्हऊग ओछंगेनिवेसियाणं देति समुल्लावएपिएसु महुरेसु पुणोपुणो मंजुलप्पभंगिए ॥. ते अहं-अधण्णा अपुण्णा अलक्खणाय अकयपुग्णातो एगमविगपत्ता तं सेयं ममकल्लं . पाउप्पभाए जाव जलते घणं सत्थवाहं आपुरुलेत्ता घण्णेणं सत्थवाहेणं अभुणु णायासमाणीसुबहुविपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावत्ता सुबहुं पुष्फ वत्थगंध मल्लालकार गहाय, बहूहि मित्त नायि नियग सयण सबंधि परिजण महिलाहिं
सद्धिं संपग्वुिडा जाई इमाई रायगिहस्स नयरस्स बहिया, णागाणिय, भूपाणिय, वैसी है, और जिस का बालक मधुर आलाप वारंवार करता है उस माता को धन्य है यावत् उस का मनुष्य जन्म भी सफल है. परंतु मैं अधन्या, अपूण्या हूँ शुभ लक्षणों से रहित हूं, क्यों की मुझे एक बालक की भी उत्पत्ति नहीं हुई. इस से कलप्रभात में धन्ना सार्थवाह को पुच्छ कर उन की अनुज्ञा होने से विपुल अशन,पान खादिम स्वादिम बनाकर बहुत अच्छे पुष्प, वस्त्र, गंध माल्यालंकार लेकर बहुत मित्र ज्ञाती, निजक, स्वजन, संबंधीयों की स्त्रियों की साथ इस राजगृह नगर वाहिर जो नाग भूत, यक्ष, इन्द्र, स्कंध, रूद्र, शिव व श्रमण आदि देवों हैं उन की प्रतिमाओं को बहुत मूल्यवान पुष्पादिक से
* प्रकाशक राजावहादुर लाला खदवसायजीवालाप्रसादजी .
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