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48:+ षष्टाङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतरकन्ध 43+
॥दितिय अध्ययनम् ॥ जतिणं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेनं आव संपन्तेण पढमस्स णायज्झयणस्स अयमझे पप्णते वितियस्त भंते ! गायझमजस के अ पणते ? ॥ एवं खलु जंब ! तेणं काल लेणं समएणं रामांगहेगाम जयरे होत्था, गरवण्णा ।। तत्थणं रायामहे पयरे सेणिये णामं राया होत्था माहया वाओ तस्स रायनिहस्स नबरस बहिया उत्तर पुरच्छिम दिसीभाए गुणसिलए णाम चेहए होत्था, वण्णओ ॥ १॥ तस्सणं गुणसिलयस्स अइरसामंते एत्थणं महं एगे पडिय जिण्णुजाणयावि होत्या, विटु देवउले परिसडिय तोरणघरे जाणाविह गुच्छ
श्री जम्बू स्वामी सर्वा स्वामी से कहते हैं कि अहो भगवन् ! श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी यावत् मुक्ति पधारे उनोंने प्रथर अध्ययन का उक्त कथनानुसार अर्थ कहा,तव दूसरे अध्ययन का क्या अर्थ कहा? अहो जम्बू ! उस काल उस समय में राजगह नामका नगर था. उस का वर्णन चंपा नगरी समान जानना. उस राज गृह नगर में श्रेणिक रजा राज्यकता था. वह भी वर्णन योग्य था, उस राजगृह नगर से बाहर उत्तर पूर्व सा ईशान कोन में गणवला नामक उद्यान था. उस का वर्णन पूर्ण भद्र उद्दान जो जानना. ॥ १॥ उभ गुणशील उद्यान की पारी एक रखा जीर्ण उद्यान था. उस में देवालय नष्ट होगये थे. तोरण महाघर इत्यादि सहगये थे विविध प्रकार के गुच्छ, गुल्म,
धन्नासार्थवाह का दूसरा अध्ययन 498+
અર્થ
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