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________________ + भंतेवासी मेहे णाम अणगार पगइमदए जाब विणीए सेणं देवाणुप्पिएहिं अम्भणुकाए समाणे गोयमाइए समणे जिगंथेय जिग्गंधीओय खानेता अम्हेहिं सद्धि विउलं. ..पवयं सणियं २ दुरुहइ सयमा मेहवग सण्णिमासं पुढवीसिलं पहिलेहे। २ ना भत्तगणपडिइक्खिए अणुपुश्वेणं कालगए एसणं देवाणुप्पिया ! मेहस्स अगगारस्त. माघारभंडर ॥ १८६ ॥ भो ! ति, भगवं गोयम समर्ग भगवं महावीरं वदह मसत्ता एवं वयासी-एवं खल देवाणाप्पयवर्ण अंतवासी महे णामं अणगारे सेणं भंते ! मेहे अगगारे कालमासे कालोकच्चा कहिंगए कहिं उबवण्णे ? गोयमा, नीत मेघनगरमागकी मात्रामाद अनि निमीयों को बयाकर हमारी सब विपुछ पर्वत पर शनैः २ भाय. वहां उनोंने स्वयमेव मेघ समान पृथ्वी शिला पट्ट की पार बना कर पात भक्त पान का प्रत्याख्यान कर काल प्राप्त हुए. भो देवानुप्रिय ! यह मेपर अनगर के मंगरकरन हैं. ॥८६॥ मगशन गौतम स्वामी श्री श्रषण भगवान महावीर स्वामी को ना नमस्कार कर ऐमागील अहो भगान् ! आरका शिष्य पंच परमार काल के अवसर में काम . उत्क्षिस (अघकुधार)कावा अध्ययन.43 :कोइ साधु काल धर्म को प्राप्त होते हैं . तब अन्य साधुओं चारलागत्स का इसग करते हैं ऐसी आचार्य परंपरा है. - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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